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रविवार, 6 दिसंबर 2009
शनिवार, 28 नवंबर 2009
khwab
ख्वाब
ख्वाब ही हैं जो जिंदगी को
जीना सिखा देते हैं
ख्वाब ही हैं जो मौत से भी
लड़ना सिखा देते हैं
आप तो बस टूटे हुए
ख्वाबों की बात करते हो
हम टूटे हुए ख्वाब को भी
ख्वाब में मुकम्मल बना देते हैं.
हम ख्वाब देखते हैं मगर
हकीकत में जिया करते हैं
ख्वाब को मंजिल नहीं,
रास्ता कहा करते हैं.
आप ख्वाब देखकर बस
ख्यालों में खो जाते हो
हम ख्यालों को भी ख्वाब में
हकीकत बनाया करते हैं.
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732
ख्वाब ही हैं जो जिंदगी को
जीना सिखा देते हैं
ख्वाब ही हैं जो मौत से भी
लड़ना सिखा देते हैं
आप तो बस टूटे हुए
ख्वाबों की बात करते हो
हम टूटे हुए ख्वाब को भी
ख्वाब में मुकम्मल बना देते हैं.
हम ख्वाब देखते हैं मगर
हकीकत में जिया करते हैं
ख्वाब को मंजिल नहीं,
रास्ता कहा करते हैं.
आप ख्वाब देखकर बस
ख्यालों में खो जाते हो
हम ख्यालों को भी ख्वाब में
हकीकत बनाया करते हैं.
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732
रविवार, 15 नवंबर 2009
चाहत १९७७ मे लिखी रचना
चाहत
तू ऐसे आज नज़र आई
जैसे हो भोर अँधेरे की
तुझको गर दीपक मानूं तो
में कीट पतंगा बन जाऊं
तुझको गर साकी मानूं तो
में एक प्याला बन जाऊं
तू बन जाए गर हरियाली
में कीट पतंगा बन जाऊं
तू स्वर्ग लोक को जाए तो
में साधू कोई बन जाऊं
तू नरक लोक को जाए तो
में पापी कोई बन जाऊं
तू कहीं नज़र न आये तो
में आंसू बन कर बह जाऊं.
डॉ अ किर्तिवर्धन
तू ऐसे आज नज़र आई
जैसे हो भोर अँधेरे की
तुझको गर दीपक मानूं तो
में कीट पतंगा बन जाऊं
तुझको गर साकी मानूं तो
में एक प्याला बन जाऊं
तू बन जाए गर हरियाली
में कीट पतंगा बन जाऊं
तू स्वर्ग लोक को जाए तो
में साधू कोई बन जाऊं
तू नरक लोक को जाए तो
में पापी कोई बन जाऊं
तू कहीं नज़र न आये तो
में आंसू बन कर बह जाऊं.
डॉ अ किर्तिवर्धन
सोमवार, 28 सितंबर 2009
वेदना
वेदना
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन चार दीन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से,
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द ना सहने से,
जब मुझे होती है
जरूरत
किसी की संवेदनाओं की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समाने की,
मन तरसता है
किसी का प्यार पाने को,
तब उस क्षण मे
तुम ही नाही
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ,
अछूत के समान
स्व केंद्रित बना दी जाती हूँ,
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नाही आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने की चाह किया करती हूँ.
फिर अचानक अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कार देता है
अगले माह तक
जीने के लिए.
मैं
भूल कार वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे में
पाने को युम्हारा अमित प्यार.
डॉक्टर आ कीर्तिवर्धन
9911323732
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन चार दीन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से,
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द ना सहने से,
जब मुझे होती है
जरूरत
किसी की संवेदनाओं की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समाने की,
मन तरसता है
किसी का प्यार पाने को,
तब उस क्षण मे
तुम ही नाही
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ,
अछूत के समान
स्व केंद्रित बना दी जाती हूँ,
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नाही आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने की चाह किया करती हूँ.
फिर अचानक अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कार देता है
अगले माह तक
जीने के लिए.
मैं
भूल कार वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे में
पाने को युम्हारा अमित प्यार.
डॉक्टर आ कीर्तिवर्धन
9911323732
रविवार, 27 सितंबर 2009
पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का शक्ति विशेषांक | आवाज़
पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का शक्ति विशेषांक | आवाज़सुबह सवेरे २
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे 2
सुबह सवेरे २
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
शनिवार, 26 सितंबर 2009
शुभकामनाएं
कामनाएं.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
सोमवार, 21 सितंबर 2009
सोमवार, 14 सितंबर 2009
yaad
१९७८ मे लिखी एक रचना भेज रहा हूँ.
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
रविवार, 6 सितंबर 2009
अभिमन्यु वध
vartmaan rajniti me kitne abhimanyuon ka vadh ho raha hai?
____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
शनिवार, 5 सितंबर 2009
सफर के सजदे में: कैसे करें सच का सामना
सफर के सजदे में: कैसे करें सच का सामना
aaj aapka blog dekha.achcha laga,lekin kal padhne ke baad charcha karunga.
dr.a.kirtivardhan
aaj aapka blog dekha.achcha laga,lekin kal padhne ke baad charcha karunga.
dr.a.kirtivardhan
रविवार, 23 अगस्त 2009
समर्पण
समर्पण
कर दीजिये पूर्ण समर्पण अंहकार का
अपने प्रभु के सामने
देखिये फिर कृपा उसकी
क्या मिले संसार मे.
सबसे पहले शान्ति मिलती
फिर मिलता खजाना संतोष का
.जब त्यागी पर निंदा तुमने
प्रभु दोस्ती का संग मिला.
क्या खोया,क्या पाया
समर्पण मे न विचारिये
व्यापार नहीं है प्रभु भक्ति
बस देने का भाव लाइए
डॉ अ किर्तिवर्धन
कर दीजिये पूर्ण समर्पण अंहकार का
अपने प्रभु के सामने
देखिये फिर कृपा उसकी
क्या मिले संसार मे.
सबसे पहले शान्ति मिलती
फिर मिलता खजाना संतोष का
.जब त्यागी पर निंदा तुमने
प्रभु दोस्ती का संग मिला.
क्या खोया,क्या पाया
समर्पण मे न विचारिये
व्यापार नहीं है प्रभु भक्ति
बस देने का भाव लाइए
डॉ अ किर्तिवर्धन
रविवार, 16 अगस्त 2009
शनिवार, 1 अगस्त 2009
मम्मी मुझे बताओ कैसे?
मम्मी मुझे बताओ कैसे?
कैसे आते आम पेड़ पर
और जमीन मे आलू
मम्मी मुझे बताओ कैसे
नाचे कूदे भालू?
कैसे आता चाँद गगन मे
और नीलगगन मे तारे
मम्मी मुझे बताओ कैसे
सूरज लाता भोर उजारे?
मैंने देखा चिडिया को
सुबह सवेरे आती
मम्मी मुझे बताओ कैसे
चिडिया इतना मीठा गाती?
कैसे बादल उडे गगन मे
फिर बरसी वरखा रानी
मम्मी मुझे बताओ कैसे
भीगे नाना नानी?
कैसे पंछी उडे गगन मे
और जमीन पर आते
मम्मी मुझे बताओ कैसे
पर्वत ऊँचे होते जाते?
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732
कैसे आते आम पेड़ पर
और जमीन मे आलू
मम्मी मुझे बताओ कैसे
नाचे कूदे भालू?
कैसे आता चाँद गगन मे
और नीलगगन मे तारे
मम्मी मुझे बताओ कैसे
सूरज लाता भोर उजारे?
मैंने देखा चिडिया को
सुबह सवेरे आती
मम्मी मुझे बताओ कैसे
चिडिया इतना मीठा गाती?
कैसे बादल उडे गगन मे
फिर बरसी वरखा रानी
मम्मी मुझे बताओ कैसे
भीगे नाना नानी?
कैसे पंछी उडे गगन मे
और जमीन पर आते
मम्मी मुझे बताओ कैसे
पर्वत ऊँचे होते जाते?
डॉ अ किर्तिवर्धन
09911323732
शनिवार, 4 जुलाई 2009
मेरी कविता
मेरी कविता
मेरी कविता आँसू सम है
जो बिन नियम के चलते हैं
बस भावों को दर्शाते हैं
बिना कहे
शब्दों म कुछ भी
दिल के राज
बता जाते हैं.
आँसू
बस
भावों की अनुभूति हैं
स्वयं रंग
कैनवास और कूची है.
वाही भाव
जब शब्दों मे आते हैं
शब्द ही रंग
और कूची बन जाते हैं
मेरे पन्नों के कैनवास पर
कविता बनकर
छा जाते हैं.
शब्द स्वयं
कविता बन जाते हैं.
आ.कीर्तिवर्धन
मेरी कविता आँसू सम है
जो बिन नियम के चलते हैं
बस भावों को दर्शाते हैं
बिना कहे
शब्दों म कुछ भी
दिल के राज
बता जाते हैं.
आँसू
बस
भावों की अनुभूति हैं
स्वयं रंग
कैनवास और कूची है.
वाही भाव
जब शब्दों मे आते हैं
शब्द ही रंग
और कूची बन जाते हैं
मेरे पन्नों के कैनवास पर
कविता बनकर
छा जाते हैं.
शब्द स्वयं
कविता बन जाते हैं.
आ.कीर्तिवर्धन
मंगलवार, 23 जून 2009
मेरा गीत मुझे लौटा दो
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
गाया था जो संग तुम्हारे
मधुर क्षणों मे,भंवरों के संग
गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
चंदा की वह मधुर चाँदनी
छत पर जा जब बातें की थी
चाँदनी मुझको लौटा दो
मैं जी लूँगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
अमुवा की वह छावं घनी
पवन संग झुला झूले थे
मुझको लौटा दो
मैं जी लूंगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तन्हाई मे तिल-तिल जीना
और मिलन की इच्छा करना
पल मुझको लौटा दो
मैं जी लूंगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
जारी है.
प्रस्तुतकर्ता a.kirtivardhan पर 9:37 AM 0 टिप्पणियाँ
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
गाया था जो संग तुम्हारे
मधुर क्षणों मे,भंवरों के संग
गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
चंदा की वह मधुर चाँदनी
छत पर जा जब बातें की थी
चाँदनी मुझको लौटा दो
मैं जी लूँगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
अमुवा की वह छावं घनी
पवन संग झुला झूले थे
मुझको लौटा दो
मैं जी लूंगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
तन्हाई मे तिल-तिल जीना
और मिलन की इच्छा करना
पल मुझको लौटा दो
मैं जी लूंगा
तुम चाहती हो तुमको भूलूं
मैं भूलूंगा
मेरा गीत मुझे लौटा दो
मैं जी लूँगा।
जारी है.
प्रस्तुतकर्ता a.kirtivardhan पर 9:37 AM 0 टिप्पणियाँ
रविवार, 7 जून 2009
अनुशासन
_____अनुशासन ____
माँ
नहीं पिलाती दूध
उस मासूम को
समय -बसमे
जब वह होता है
भूखा
और रोता है
दूध के लिए.
माँ
नहीं कराती उसे
स्तनपान
क्योंकि
डर है उसे
अपनी
देहयष्टि के
खराब होने का.
माँ
नहीं पिला सकती
दूध
वक़्त -बेवक्त
उस अबोध को
जो नहीं जानता
समय का महत्व
और
माँ की व्यस्तता .
हाँ
वह सीख जाता है
जन्म से ही
बोतल से दूध पीना
सिर्फ
और सिर्फ
निर्धारित समय पर.
डॉ अ किर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
माँ
नहीं पिलाती दूध
उस मासूम को
समय -बसमे
जब वह होता है
भूखा
और रोता है
दूध के लिए.
माँ
नहीं कराती उसे
स्तनपान
क्योंकि
डर है उसे
अपनी
देहयष्टि के
खराब होने का.
माँ
नहीं पिला सकती
दूध
वक़्त -बेवक्त
उस अबोध को
जो नहीं जानता
समय का महत्व
और
माँ की व्यस्तता .
हाँ
वह सीख जाता है
जन्म से ही
बोतल से दूध पीना
सिर्फ
और सिर्फ
निर्धारित समय पर.
डॉ अ किर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
शनिवार, 2 मई 2009
अगर मैं प्रधानमन्त्री......
mitron, ultateer.blogspot.com par bahut hi sunder bahash padhne ko mili.aap bhi usme hissa lekar sarthak bahash ko aage badhaayen.
dr.a.kirtivardhan
dr.a.kirtivardhan
मंगलवार, 14 अप्रैल 2009
पत्थरों मे गीत
कौन कहता है
पर्वतों मे गीत नहीं होता
कठोरता के बीच
मधुर संगीत नहीं होता?
होता है बहुत कुछ
पत्थर के दिलों मे
बस सुनाने का अपना
अंदाज नहीं होता.
देखा है रोते हुए
पत्थरों को मैंने
बहते हैं उनके अंशु
जो गिरते हैं झरने.
आहें भरा करते
पत्थर जो लुढ़कते
जब तन से उनके वृक्षों के
आँचल है सरकते.
सरकता है जब आँचल
बे पर्दगी होती
उघडा हुआ हो जिस्म
निगाहें सबकी लगी होती.
होते हैं जो इंसान
कभी वो भी बहकते
हसरत लिए दिल मे
भले चुप ही रहते.
सुनने को गीत पत्थरों का
पर्वत को काटते.
कटे हुए जिस्म पर
फिर कंकरीट लादते.
कटते हुए पर्वत भला
गीत कौन सा गायें
नंगा हुआ जिस्म उनका
गीत कैसे सुनाएँ?
देखो जरा पर्वतों पर
वृक्ष लगाकर
नंगे हुए जिस्म पर
हरी चुनरी सजाकर.
पत्थरों मे गीत
तुम्हे सुनाई पड़ेंगे
बहते हुए झरने
तब संगीत बनेंगे.
चुनरी हरी हो यदि
माता के भाल पर
खेलती हों नदियाँ
उसकी कदम ताल पर.
कंकरीट के जंगलों का
न हो वहाँ जमाव
पत्थरों मे गीत के
मधुर स्वर आयेंगे.
आओ हम सब मिलकर कम से कम एक पेड़ का रोपण अवस्य करें.
आओ हम एक प्रण करें
धरती पर वन सघन करें
वृक्ष धरा के आभूषण
दूर करें सब प्रदुषण .
और अपनी धरती,पातळ,गगन,जल,वायु एवं अग्नि की पवित्रता बनाये रखने का संकल्प लें.
डॉ.अ.किर्तिवर्धन
पर्वतों मे गीत नहीं होता
कठोरता के बीच
मधुर संगीत नहीं होता?
होता है बहुत कुछ
पत्थर के दिलों मे
बस सुनाने का अपना
अंदाज नहीं होता.
देखा है रोते हुए
पत्थरों को मैंने
बहते हैं उनके अंशु
जो गिरते हैं झरने.
आहें भरा करते
पत्थर जो लुढ़कते
जब तन से उनके वृक्षों के
आँचल है सरकते.
सरकता है जब आँचल
बे पर्दगी होती
उघडा हुआ हो जिस्म
निगाहें सबकी लगी होती.
होते हैं जो इंसान
कभी वो भी बहकते
हसरत लिए दिल मे
भले चुप ही रहते.
सुनने को गीत पत्थरों का
पर्वत को काटते.
कटे हुए जिस्म पर
फिर कंकरीट लादते.
कटते हुए पर्वत भला
गीत कौन सा गायें
नंगा हुआ जिस्म उनका
गीत कैसे सुनाएँ?
देखो जरा पर्वतों पर
वृक्ष लगाकर
नंगे हुए जिस्म पर
हरी चुनरी सजाकर.
पत्थरों मे गीत
तुम्हे सुनाई पड़ेंगे
बहते हुए झरने
तब संगीत बनेंगे.
चुनरी हरी हो यदि
माता के भाल पर
खेलती हों नदियाँ
उसकी कदम ताल पर.
कंकरीट के जंगलों का
न हो वहाँ जमाव
पत्थरों मे गीत के
मधुर स्वर आयेंगे.
आओ हम सब मिलकर कम से कम एक पेड़ का रोपण अवस्य करें.
आओ हम एक प्रण करें
धरती पर वन सघन करें
वृक्ष धरा के आभूषण
दूर करें सब प्रदुषण .
और अपनी धरती,पातळ,गगन,जल,वायु एवं अग्नि की पवित्रता बनाये रखने का संकल्प लें.
डॉ.अ.किर्तिवर्धन
धर्मनिरपेक्षता
धर्मनिरपेक्षता
-----------
धर्मनिरपेक्षता क्या है? राज नेताओं का लड़ाने का खेल,सत्ता प्राप्त करने की सीढ़ी.
वास्तव मे कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता.
मानव जन्म यदि लिया है
सबकी अपनी जाती है
हर जाती के संग जुडी
धर्म की अपनी थाती है
अपने धर्म का आदर करना
मानव की पहचान है
गैरों को भी आदर देना
धर्म का यह पैगाम है.
धर्म निरपेक्ष पशु होते हैं
नहीं उनका कोई धर्म बना
-----------
धर्मनिरपेक्षता क्या है? राज नेताओं का लड़ाने का खेल,सत्ता प्राप्त करने की सीढ़ी.
वास्तव मे कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता.
मानव जन्म यदि लिया है
सबकी अपनी जाती है
हर जाती के संग जुडी
धर्म की अपनी थाती है
अपने धर्म का आदर करना
मानव की पहचान है
गैरों को भी आदर देना
धर्म का यह पैगाम है.
धर्म निरपेक्ष पशु होते हैं
नहीं उनका कोई धर्म बना
नेता और सौंप
नेता और सांप (हाइकु)
------------------------------
नेता जी बोले
साँपों को मार डालो
अब हम हैं.
हम ड्सेंगे
मरने नहीं देंगे
हमारा वादा.
जहरीला है
सांप का एक फन
में हर फन.
मेरी सेवा मे
जो कोई लग जाता
अभय पाता.
दरअसल
मेरा जहर देता
अनोखा मज़ा.
उसके लिए
बड़े से बड़ा मज़ा
फीका बेमजा.
सांप का काटा
पानी को तडपता
मरते वक्त.
मेरा काटा
पानी नहीं मांगता
मरने तक.
सांप का डर
जहर से अधिक
जहरीला है.
में डराता हूँ
जहर की तरह
मारता नहीं.
नेता व् सांप
आदत एक जैसी
दोनों डसते.
डॉ.अ किर्तिवर्धन
------------------------------
नेता जी बोले
साँपों को मार डालो
अब हम हैं.
हम ड्सेंगे
मरने नहीं देंगे
हमारा वादा.
जहरीला है
सांप का एक फन
में हर फन.
मेरी सेवा मे
जो कोई लग जाता
अभय पाता.
दरअसल
मेरा जहर देता
अनोखा मज़ा.
उसके लिए
बड़े से बड़ा मज़ा
फीका बेमजा.
सांप का काटा
पानी को तडपता
मरते वक्त.
मेरा काटा
पानी नहीं मांगता
मरने तक.
सांप का डर
जहर से अधिक
जहरीला है.
में डराता हूँ
जहर की तरह
मारता नहीं.
नेता व् सांप
आदत एक जैसी
दोनों डसते.
डॉ.अ किर्तिवर्धन
रविवार, 12 अप्रैल 2009
dharmnirpekshta
धर्मनिरपेक्षता
-----------
धर्मनिरपेक्षता क्या है? राज नेताओं का लड़ाने का खेल,सत्ता प्राप्त करने की सीढ़ी.
वास्तव मे कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता.
मानव जन्म यदि लिया है
सबकी अपनी जाती है
हर जाती के संग जुडी
धर्म की अपनी थाती है
अपने धर्म का आदर करना
मानव की पहचान है
गैरों को भी आदर देना
धर्म का यह पैगाम है.
धर्म निरपेक्ष पशु होते हैं
नहीं उनका कोई धर्म बना.
-----------
धर्मनिरपेक्षता क्या है? राज नेताओं का लड़ाने का खेल,सत्ता प्राप्त करने की सीढ़ी.
वास्तव मे कोई धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता.
मानव जन्म यदि लिया है
सबकी अपनी जाती है
हर जाती के संग जुडी
धर्म की अपनी थाती है
अपने धर्म का आदर करना
मानव की पहचान है
गैरों को भी आदर देना
धर्म का यह पैगाम है.
धर्म निरपेक्ष पशु होते हैं
नहीं उनका कोई धर्म बना.
शनिवार, 11 अप्रैल 2009
पर्यावरण
____पर्यावरण ___
आगामी विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा,ऐसी धारणा वैज्ञानिकों ,बुधिजीविओं तथा राजनेताओं द्वारा निरंतेर व्यक्त की जा रही हैं.
धुर्वों पर बर्फ पिघल रही है.इसका कारण वातावरण मे अत्यधिक गर्मी का बढ़ना बताया जा रहा है.इससे हिम युग का अंत हो जायेगा,ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं.
वातावरण में धूल के बादल तथा गैसों की मात्रा बढ़ने से पूर्व की तुलना मे सूर्य से आने वाली गर्मी मे कमी दर्ज की गई है.और कहा जा रहा है कि एक अन्तराल के बाद वायुमंडल मे धुल कणों कि अधिकता के कारण सूर्य कि किरणें प्रथ्वी तक नहीं पहुँच पाएंगीं.
धुर्वों पर बर्फ पिघलने से समुन्द्र का जल स्तर बढ़ रहा है.कुछ समय बाद समुन्द्र किनारे स्थित कुछ देश,नगरों के जल समाधि कि संभावना हैग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए ऊँची इमारतों पर कंकरीट के २ स्क्रेपर लगाने की योजना है.
सूरज की गर्मी को धरती पर आने से रोकने के लिए स्पेस मे शीशे की छतरी लगाने की योगना है.
ऐसे ही भयावह तथा विरोधाभासी चित्र प्रतिदिन अखबार की सुर्खियों मे छाए रहते हैं.अनेकों विद्वानों ,वैज्ञानिकों तथा राजनेताओं द्वारा उपरोक्त समस्याओं के निदान के लिए विश्व व्यापी गोष्ठिओं का आगाज कर जन-जन को इस समस्या का भयावह रूप दिकाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है.कितने आश्चर्य की बात है कि समस्या को तो बढा चढा कर दर्शाया जा रहा है परन्तु इसके कारण पर कोई विचार करने को तैयार नहीं है.वास्तव मे पर्यावरण की इस समस्या के लिए विकसित देश ही पूर्ण रूपेण जिम्मेदार हैं और अब अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए ही पर्यावरण की समस्या का भयावह रूप खींचने मे लगे हैं.विचार करें कि विश्व के जंगलों का कितने प्रतिशत कटान विकशित देशों द्वारा किया गया? परमाणु रिअक्टोर कहाँ लगाए गए तथा परमाणु कचरा किसके द्वारा,कहाँ पर डाला जा रहा है?एक और वैज्ञानिक कहते हैं कि सूरज की गरमी घट रही है,वातावरण मे धुल के बादल घनेपर्यावरण की समस्या को समझने से पहले आवश्यक है प्रकृति के रहस्य को समझाना...नदियों मे जल
प्रतीक था
जीवन का.
नदियों के किनारें
प्राकृतिक अभ्यारण्य बने
सभ्यताएं पली
संस्कृति का आगाज़ हुआ.
आज मानव ने तरक्की कर ली है
नदियों का जल रोककर
जलाशय बनाए
पशु पक्षियों के अभ्यारण्य काटकर
कंकरीट के जंगल बनाएं.
नदियाँ सुख गई
अभ्यारण्य ख़त्म जी हाँ,यही है वास्तविकता.प्रकृति से दूरी,जंगल ख़तम ,वर्षा मे कमी ,जीवन दायनी ऑक्सिजन का अभाव,वृक्षों के कारण भू जलस्तर की होने वाली वृद्धी मे कमी तथा वृक्षों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड के शोषण मे कमी.
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता सदैव ही प्रकृति की पोषक रही है.हमारे ऋषि -मुनियों तथा वैज्ञानिकों ने युगों पूर्व ही प्रकृति व् पञ्च भूतों के महत्व को समझ लिया था.और इसके संरक्षण के लिए भी उन्होंने उपाय सुझाए थे जो की हमारी संस्कृति ,सभ्यता एवं धर्म के आधार भूत स्तम्भ हैं.
भारतीय धर्म ग्रंथों मे पेड़ पौधों का संरक्षण,यज्ञ हवं द्वारा वातावरण मे मौजूद हानिकारक गैसों के प्रभाव को ख़त्म करना,शुद्ध वायु मंडल का निर्माण,नदियों-नहरों के पानी की शुद्धता का ध्यान,भू जलस्तर बनाए रखने के लिए तालाब ,सरोवरों का निर्माण एवं उसमे वर्षा जल का संचयन से सम्बंधित जानकारियाँ भरी पड़ी हैं.विडम्बना है की हमने तरक्की तो कर ली है परन्तु उसके लिए क्या कीमत दी,इस पर विचार नहीं किया
जग मे हमने कर उजियारा
मन काला रंग डाला.
तुलसी चौरे पर दिया जला माँ
सबकी सुख चिंता करती थी
हमने जगह की कमी बताकर
तुलसी चौरे को तुड़वा डालायह हमारी न समझी नहीं तो क्या है की आज हम तुलसी,पीपल,व् नीम जैसे वृक्षों का महत्व नहीं समझ रहे हैं.उत्तराखंड मे चिपको आन्दोलन के प्रणेता श्री सुंदर लाल बहुगुणा ने गर्मिनों के सहयोग से वृक्षों का महत्व समझा तथा एक आन्दोलन के रूप मे अपनी जान पर खेलकर भी वृक्षों को काटने से बचाया.आज उवायु मंडल मे जमा धुल के कण स्वतः ख़तम हो जायेंगे.तब हमारे पञ्च भूतों का संरक्षण हिगा तथा प्रयावरण से सम्बंधित को समस्या नहीं रहेगी.यदि हम पत्थरों मे भी गीत सुनना चाहते हैं तो आओ वृक्ष लगाएं.
सी जज्बे की दो चरणों मे जरुरत है,पहला तो यह कि हम वृक्षों को काटने से बचाए तथ दूसरा यह कि अत्यधिक वृक्षारोपण करें.
एक अन्य बात पानी के सम्बन्ध मे भी ध्यान देने योग्य है.वर्षा के पानी को बहाने से बचाने के लिए अधिकाधिक संख्या मे तालाब,बावडी,कुँए,व् सरोवर का निर्माण किया जाए.इससे एक और तो भू जलस्तर बढेगा दूसरी और इनके पास वृक्षारोपण स्वयं भी बढेगा और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने मे सहायक होगा.वृक्षारोपण से भूमि का क्षरण भी रुकेगा.पेड़ पौधों से गुजरने वाली हवा से मधुर संगीत निकलेगा.कार्बन दाई ऑक्साइड की वातावरण मे अधिकता पर अंकुश लगेगा
पशु-पक्षी समाप्त
सभ्यता संस्कृति का लोप
आत्मनः सकाशात आकाशः संभूत,
आकाशाद वायोराग्निर्ग्रे रापोअद्भ्यः पृथ्वी. (छान्दोग्य उपनिषद )
अर्थात पंचभूतों-आकाश ,वायु,अग्नि ,जल और पृथ्वी से प्रकृति की क्रियाएं चलती हैं.आत्मा से आकाश,आकाश से वायु,वायु से अग्नि,अग्नि से जल और जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई.भारतीय संस्कृति मे पंचभूतों की सुरक्षा एवम संरक्षा की अवधारण स्रष्टि के प्रारंभ से ही रही है जिस पर आगे चर्चा की गई है.यह भी निर्विवाद सत्य है की वातावरण मे गर्मी बढ़ रही है,भू जल स्तर भी निचे चला गया है,जिसके कारण पीने के पानी की समस्या बढती जा रही है.
प्राचीन काल मे सभ्यता और संस्कृति के फलने व् फूलने के लिए परक्रती के संरक्षण को आधार माना गया.परक्रती के साए मे ही सभ्यताएं आगे बढ़ी. हो रहे हैं,दूसरी और ग्लोबल वार्मिंग का डर बता कौन कहता है
पर्वतों मे गीत नहीं होता
कठोरता के बीच
मधुर संगीत नहीं होता?
होता है बहुत कुछ
पत्थर के दिलों मे
बस सुनाने का अपना
अंदाज नहीं होता.
देखा है रोते हुए
पत्थरों को मैंने
बहते हैं उनके अंशु
जो गिरते हैं झरने.
आहें भरा करते
पत्थर जो लुढ़कते
जब तन से उनके वृक्षों के
आँचल है सरकते.सरकता है जब आँचल
बे पर्दगी होती
उघडा हुआ हो जिस्म
निगाहें सबकी लगी होती.
होते हैं जो इंसान
कभी वो भी बहकते
हसरत लिए दिल मे
भले चुप ही रहते.
सुनने को गीत पत्थरों का
पर्वत को काटते.
कटे हुए जिस्म पर
फिर कंकरीट लादते.
कटते हुए पर्वत भला
गीत कौन सा गायें
नंगा हुआ जिस्म उनका
गीत कैसे सुनाएँ?
देखो जरा पर्वतों पर
वृक्ष लगाकर
नंगे हुए जिस्म पर
हरी चुनरी सजाकर.
पत्थरों मे गीत
तुम्हे सुनाई पड़ेंगे
बहते हुए झरने
तब संगीत बनेंगे.
चुनरी हरी हो यदि
माता के भाल पर
खेलती हों नदियाँ
उसकी कदम ताल पर.
कंकरीट के जंगलों का
न हो वहाँ जमाव
पत्थरों मे गीत के
मधुर स्वर आयेंगे.
आओ हम सब मिलकर कम से कम एक पेड़ का रोपण अवस्य करें.
आओ हम एक प्रण करें
धरती पर वन सघन करें
वृक्ष धरा के आभूषण
दूर करें सब प्रदुषण .
और अपनी धरती,पातळ,गगन,जल,वायु एवं अग्नि की पवित्रता बनाये रखने का संकल्प लें
आगामी विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा,ऐसी धारणा वैज्ञानिकों ,बुधिजीविओं तथा राजनेताओं द्वारा निरंतेर व्यक्त की जा रही हैं.
धुर्वों पर बर्फ पिघल रही है.इसका कारण वातावरण मे अत्यधिक गर्मी का बढ़ना बताया जा रहा है.इससे हिम युग का अंत हो जायेगा,ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं.
वातावरण में धूल के बादल तथा गैसों की मात्रा बढ़ने से पूर्व की तुलना मे सूर्य से आने वाली गर्मी मे कमी दर्ज की गई है.और कहा जा रहा है कि एक अन्तराल के बाद वायुमंडल मे धुल कणों कि अधिकता के कारण सूर्य कि किरणें प्रथ्वी तक नहीं पहुँच पाएंगीं.
धुर्वों पर बर्फ पिघलने से समुन्द्र का जल स्तर बढ़ रहा है.कुछ समय बाद समुन्द्र किनारे स्थित कुछ देश,नगरों के जल समाधि कि संभावना हैग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए ऊँची इमारतों पर कंकरीट के २ स्क्रेपर लगाने की योजना है.
सूरज की गर्मी को धरती पर आने से रोकने के लिए स्पेस मे शीशे की छतरी लगाने की योगना है.
ऐसे ही भयावह तथा विरोधाभासी चित्र प्रतिदिन अखबार की सुर्खियों मे छाए रहते हैं.अनेकों विद्वानों ,वैज्ञानिकों तथा राजनेताओं द्वारा उपरोक्त समस्याओं के निदान के लिए विश्व व्यापी गोष्ठिओं का आगाज कर जन-जन को इस समस्या का भयावह रूप दिकाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है.कितने आश्चर्य की बात है कि समस्या को तो बढा चढा कर दर्शाया जा रहा है परन्तु इसके कारण पर कोई विचार करने को तैयार नहीं है.वास्तव मे पर्यावरण की इस समस्या के लिए विकसित देश ही पूर्ण रूपेण जिम्मेदार हैं और अब अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए ही पर्यावरण की समस्या का भयावह रूप खींचने मे लगे हैं.विचार करें कि विश्व के जंगलों का कितने प्रतिशत कटान विकशित देशों द्वारा किया गया? परमाणु रिअक्टोर कहाँ लगाए गए तथा परमाणु कचरा किसके द्वारा,कहाँ पर डाला जा रहा है?एक और वैज्ञानिक कहते हैं कि सूरज की गरमी घट रही है,वातावरण मे धुल के बादल घनेपर्यावरण की समस्या को समझने से पहले आवश्यक है प्रकृति के रहस्य को समझाना...नदियों मे जल
प्रतीक था
जीवन का.
नदियों के किनारें
प्राकृतिक अभ्यारण्य बने
सभ्यताएं पली
संस्कृति का आगाज़ हुआ.
आज मानव ने तरक्की कर ली है
नदियों का जल रोककर
जलाशय बनाए
पशु पक्षियों के अभ्यारण्य काटकर
कंकरीट के जंगल बनाएं.
नदियाँ सुख गई
अभ्यारण्य ख़त्म जी हाँ,यही है वास्तविकता.प्रकृति से दूरी,जंगल ख़तम ,वर्षा मे कमी ,जीवन दायनी ऑक्सिजन का अभाव,वृक्षों के कारण भू जलस्तर की होने वाली वृद्धी मे कमी तथा वृक्षों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड के शोषण मे कमी.
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता सदैव ही प्रकृति की पोषक रही है.हमारे ऋषि -मुनियों तथा वैज्ञानिकों ने युगों पूर्व ही प्रकृति व् पञ्च भूतों के महत्व को समझ लिया था.और इसके संरक्षण के लिए भी उन्होंने उपाय सुझाए थे जो की हमारी संस्कृति ,सभ्यता एवं धर्म के आधार भूत स्तम्भ हैं.
भारतीय धर्म ग्रंथों मे पेड़ पौधों का संरक्षण,यज्ञ हवं द्वारा वातावरण मे मौजूद हानिकारक गैसों के प्रभाव को ख़त्म करना,शुद्ध वायु मंडल का निर्माण,नदियों-नहरों के पानी की शुद्धता का ध्यान,भू जलस्तर बनाए रखने के लिए तालाब ,सरोवरों का निर्माण एवं उसमे वर्षा जल का संचयन से सम्बंधित जानकारियाँ भरी पड़ी हैं.विडम्बना है की हमने तरक्की तो कर ली है परन्तु उसके लिए क्या कीमत दी,इस पर विचार नहीं किया
जग मे हमने कर उजियारा
मन काला रंग डाला.
तुलसी चौरे पर दिया जला माँ
सबकी सुख चिंता करती थी
हमने जगह की कमी बताकर
तुलसी चौरे को तुड़वा डालायह हमारी न समझी नहीं तो क्या है की आज हम तुलसी,पीपल,व् नीम जैसे वृक्षों का महत्व नहीं समझ रहे हैं.उत्तराखंड मे चिपको आन्दोलन के प्रणेता श्री सुंदर लाल बहुगुणा ने गर्मिनों के सहयोग से वृक्षों का महत्व समझा तथा एक आन्दोलन के रूप मे अपनी जान पर खेलकर भी वृक्षों को काटने से बचाया.आज उवायु मंडल मे जमा धुल के कण स्वतः ख़तम हो जायेंगे.तब हमारे पञ्च भूतों का संरक्षण हिगा तथा प्रयावरण से सम्बंधित को समस्या नहीं रहेगी.यदि हम पत्थरों मे भी गीत सुनना चाहते हैं तो आओ वृक्ष लगाएं.
सी जज्बे की दो चरणों मे जरुरत है,पहला तो यह कि हम वृक्षों को काटने से बचाए तथ दूसरा यह कि अत्यधिक वृक्षारोपण करें.
एक अन्य बात पानी के सम्बन्ध मे भी ध्यान देने योग्य है.वर्षा के पानी को बहाने से बचाने के लिए अधिकाधिक संख्या मे तालाब,बावडी,कुँए,व् सरोवर का निर्माण किया जाए.इससे एक और तो भू जलस्तर बढेगा दूसरी और इनके पास वृक्षारोपण स्वयं भी बढेगा और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने मे सहायक होगा.वृक्षारोपण से भूमि का क्षरण भी रुकेगा.पेड़ पौधों से गुजरने वाली हवा से मधुर संगीत निकलेगा.कार्बन दाई ऑक्साइड की वातावरण मे अधिकता पर अंकुश लगेगा
पशु-पक्षी समाप्त
सभ्यता संस्कृति का लोप
आत्मनः सकाशात आकाशः संभूत,
आकाशाद वायोराग्निर्ग्रे रापोअद्भ्यः पृथ्वी. (छान्दोग्य उपनिषद )
अर्थात पंचभूतों-आकाश ,वायु,अग्नि ,जल और पृथ्वी से प्रकृति की क्रियाएं चलती हैं.आत्मा से आकाश,आकाश से वायु,वायु से अग्नि,अग्नि से जल और जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई.भारतीय संस्कृति मे पंचभूतों की सुरक्षा एवम संरक्षा की अवधारण स्रष्टि के प्रारंभ से ही रही है जिस पर आगे चर्चा की गई है.यह भी निर्विवाद सत्य है की वातावरण मे गर्मी बढ़ रही है,भू जल स्तर भी निचे चला गया है,जिसके कारण पीने के पानी की समस्या बढती जा रही है.
प्राचीन काल मे सभ्यता और संस्कृति के फलने व् फूलने के लिए परक्रती के संरक्षण को आधार माना गया.परक्रती के साए मे ही सभ्यताएं आगे बढ़ी. हो रहे हैं,दूसरी और ग्लोबल वार्मिंग का डर बता कौन कहता है
पर्वतों मे गीत नहीं होता
कठोरता के बीच
मधुर संगीत नहीं होता?
होता है बहुत कुछ
पत्थर के दिलों मे
बस सुनाने का अपना
अंदाज नहीं होता.
देखा है रोते हुए
पत्थरों को मैंने
बहते हैं उनके अंशु
जो गिरते हैं झरने.
आहें भरा करते
पत्थर जो लुढ़कते
जब तन से उनके वृक्षों के
आँचल है सरकते.सरकता है जब आँचल
बे पर्दगी होती
उघडा हुआ हो जिस्म
निगाहें सबकी लगी होती.
होते हैं जो इंसान
कभी वो भी बहकते
हसरत लिए दिल मे
भले चुप ही रहते.
सुनने को गीत पत्थरों का
पर्वत को काटते.
कटे हुए जिस्म पर
फिर कंकरीट लादते.
कटते हुए पर्वत भला
गीत कौन सा गायें
नंगा हुआ जिस्म उनका
गीत कैसे सुनाएँ?
देखो जरा पर्वतों पर
वृक्ष लगाकर
नंगे हुए जिस्म पर
हरी चुनरी सजाकर.
पत्थरों मे गीत
तुम्हे सुनाई पड़ेंगे
बहते हुए झरने
तब संगीत बनेंगे.
चुनरी हरी हो यदि
माता के भाल पर
खेलती हों नदियाँ
उसकी कदम ताल पर.
कंकरीट के जंगलों का
न हो वहाँ जमाव
पत्थरों मे गीत के
मधुर स्वर आयेंगे.
आओ हम सब मिलकर कम से कम एक पेड़ का रोपण अवस्य करें.
आओ हम एक प्रण करें
धरती पर वन सघन करें
वृक्ष धरा के आभूषण
दूर करें सब प्रदुषण .
और अपनी धरती,पातळ,गगन,जल,वायु एवं अग्नि की पवित्रता बनाये रखने का संकल्प लें
शनिवार, 4 अप्रैल 2009
गुरुवार, 2 अप्रैल 2009
CITY LIFE
These children,
among the concrete jungle,
how can they understand nature?
chirping of birds,
rising of the sun,
shining of the moon,
how can they feel.
the pleasure of natural wind,
bliss in the dizzling,
sweat in the noon,
clarion call of the cuckoo in the dawn,
ripening of the fruit,
blossoming of the flower,
flight of the butterfly
SAVE NATURE------- SAVE NATURE
These children,
among the concrete jungle,
how can they understand nature?
chirping of birds,
rising of the sun,
shining of the moon,
how can they feel.
the pleasure of natural wind,
bliss in the dizzling,
sweat in the noon,
clarion call of the cuckoo in the dawn,
ripening of the fruit,
blossoming of the flower,
flight of the butterfly
SAVE NATURE------- SAVE NATURE
मंगलवार, 10 मार्च 2009
होली की शुभ कामनाएँ
चुनाव का मौसम है,होली का त्यौहार है
नेताओं के आचरण से,देश शर्मसार है.
ऐसे अवसर विशेष पर विनय बारम्बार है
होली के त्योहार का,निम्न आधार है.
होली की शुभ कामनाएँ
__________________________
खून की होली मत खेलो
अब प्यार के रंग मे रंग मे रंग जाओ.
जात -पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख -गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अंहकार की होली जला कर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच नीच का भेद ख़त्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही सन्देश
देश प्रेम मे रंग जाओ.
अ.कीर्तिवर्धन
नेताओं के आचरण से,देश शर्मसार है.
ऐसे अवसर विशेष पर विनय बारम्बार है
होली के त्योहार का,निम्न आधार है.
होली की शुभ कामनाएँ
__________________________
खून की होली मत खेलो
अब प्यार के रंग मे रंग मे रंग जाओ.
जात -पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख -गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अंहकार की होली जला कर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच नीच का भेद ख़त्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही सन्देश
देश प्रेम मे रंग जाओ.
अ.कीर्तिवर्धन
सोमवार, 9 मार्च 2009
होली
चुनाव का मौसम है,होली का त्यौहार है
नेताओं के आचरण से,देश शर्मसार है.
ऐसे अवसर विशेष पर विनय बारम्बार है
होली के त्योहार का,निम्न आधार है.
होली की शुभ कामनाएँ
__________________________
खून की होली मत खेलो
अब प्यार के रंग मे रंग मे रंग जाओ.
जात -पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख -गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अंहकार की होली जला कर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच नीच का भेद ख़त्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही सन्देश
देश प्रेम मे रंग जाओ.
अ.कीर्तिवर्धन
नेताओं के आचरण से,देश शर्मसार है.
ऐसे अवसर विशेष पर विनय बारम्बार है
होली के त्योहार का,निम्न आधार है.
होली की शुभ कामनाएँ
__________________________
खून की होली मत खेलो
अब प्यार के रंग मे रंग मे रंग जाओ.
जात -पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख -गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अंहकार की होली जला कर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच नीच का भेद ख़त्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही सन्देश
देश प्रेम मे रंग जाओ.
अ.कीर्तिवर्धन
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