वेदना
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन चार दीन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से,
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द ना सहने से,
जब मुझे होती है
जरूरत
किसी की संवेदनाओं की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समाने की,
मन तरसता है
किसी का प्यार पाने को,
तब उस क्षण मे
तुम ही नाही
बल्कि
सभी के द्वारा
मैं ठुकरा दी जाती हूँ,
अछूत के समान
स्व केंद्रित बना दी जाती हूँ,
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नाही आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल
मरने की चाह किया करती हूँ.
फिर अचानक अगले ही रोज
तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कार देता है
अगले माह तक
जीने के लिए.
मैं
भूल कार वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे में
पाने को युम्हारा अमित प्यार.
डॉक्टर आ कीर्तिवर्धन
9911323732
सोमवार, 28 सितंबर 2009
रविवार, 27 सितंबर 2009
पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का शक्ति विशेषांक | आवाज़
पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का शक्ति विशेषांक | आवाज़सुबह सवेरे २
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे 2
सुबह सवेरे २
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
सुबह सवेरे कभी ध्यान से
चिडियों की तुम बातें सुनना.
हंसती गाती गीत सुनाती
उनसे घर आँगन मे मिलना.
एक बर्तन पानी का रखना
पास मे थोडा दाना रखना.
चिडिया आती और नहाती
दाना खाना उनका तकना.
डॉ अ किर्तिवर्धन
9911323732
शनिवार, 26 सितंबर 2009
शुभकामनाएं
कामनाएं.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
त्रेता युग मे राम हुए थे
रावन का संहार किया.
द्वापर मे श्री कृष्ण आ गए
कंश का बंटाधार किया.
कलियुग भी है राह देखता
किसी राम कृष्ण के आने की
भारत की पवन धरती से
दुष्टों को मार भागने की.
एक नहीं लाखों रावण हैं
संग हमारे रहते हैं
दहेज़ गरीबी अशिक्षा का
कवच चढाये बैठे हैं.
कुम्भकरण से नेता बैठे
मारीच से छली यहाँ
स्वार्थों की रुई कान मे उनके
आतंक पर देते न ध्यान.
आओ हम सब राम बने
कुछ लक्ष्मण का सा रूप धरें.
नैतिकता और बाहुबल से
आतंकवाद को ख़तम करें.
शिक्षा के भी दीप जलाकर
रावण का भी अंत करें.
दशहरे पर्व की हार्दिक सुभकामनाएँ.
डॉ अ किर्तिवर्धन.
सोमवार, 21 सितंबर 2009
सोमवार, 14 सितंबर 2009
yaad
१९७८ मे लिखी एक रचना भेज रहा हूँ.
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
एक एक क्षण बिना तुम्हारे
जैसे एक जन्म लगता है.
उलझन भरी प्रतीक्षाओं मे
जीवन एक बहम लगता है.
कभी कभी तो उ़म्र अचानक
लगती पूर्ण विराम हो गयी.
जब जब याद तुम्हारी आई
सारी नींद हराम हो गयी.
डॉ अ kirtivardhan
रविवार, 6 सितंबर 2009
अभिमन्यु वध
vartmaan rajniti me kitne abhimanyuon ka vadh ho raha hai?
____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
____________________अभिमन्यु वध _____________
एक बार फिर से अभिमन्यु वध हो गया .
युधिष्ठर नैतिकता की दुहाई देते रहे
द्रोपदी का फिर से चीर हरण हो गया.
अ नैतिकता के सामने नैतिकता का
ध्वज फिर तार तार हो गया.
भीष्म के धवल वस्त्र फिर भी न मैले हो सके
सिंहासन की निष्ठा ने उनको फिर बचा लिया.
ध्रतराष्ट्र अंधे हैं गांधारी ने पट्टी बाँधी है
गुरु ड्रोन नि शब्द हैं सत्ता से उनकी यारी है
संजय निति के ज्ञाता हैं उनको निष्ठां प्यारी है
कर्ण वीर सहन शील बने है दुर्योधन से यारी है
चक्र व्यूह भेदन के सब नियम बदल गए
अर्जुन और भीम नियमों पर चलते रहे
दुर्योधन ने नियमों को नया रंग दे दिया
अभिमन्यु का वध कर दुःख प्रकट कर दिया
शकुनी की कुटिल चालों से
सभी पांडव त्रस्त हैं
कृष्ण की चालाकियां भी
अब मानो नि शस्त्र है.
शनिवार, 5 सितंबर 2009
सफर के सजदे में: कैसे करें सच का सामना
सफर के सजदे में: कैसे करें सच का सामना
aaj aapka blog dekha.achcha laga,lekin kal padhne ke baad charcha karunga.
dr.a.kirtivardhan
aaj aapka blog dekha.achcha laga,lekin kal padhne ke baad charcha karunga.
dr.a.kirtivardhan
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