शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

मित्र ,आपके पास एक छोटी बच्ची जो हॉस्टल मे भेज दी गई है उसका दर्द भेज रहा हूँ आपकी प्रतिक्रिया चाहता हूँ.

मेरा दिल है बड़ा उदास.
आओ पापा मेरे पास
मेरा दिल है बड़ा उदास
मम्मी की भी याद सताती
भैया को मैं भूल न पाती.
तुमसे मैं कुछ न मांगूगी
पढने मे प्रथम आउंगी
रखो मुझको अपने पास
मेरा दिल है बड़ा उदास.
नहीं सहेली संग खेलूंगी
गुडिया को भी बंद कर दूंगी
बैठूंगी भैया के पास
मेरा दिल है बड़ा उदास.
जाओगे जब कल्ब मे आप
मम्मी को ले कर के साथ
रह लुंगी दादी के पास
मेरा दिल है बड़ा उदास.
नहीं चाहिए चोकलेट टाफी
नहीं चाहिए मुझको फ्राक
मम्मी पापा मुझे चाहिए
मेरा दिल है बड़ा उदास.
राजा रानी के किस्से
भगवान की प्यारी बात
दादी हमको रोज सुनाती
आती मुझको उनकी याद.
बुआ से छोटी करवाना
चाचा के संग बाज़ार जाना
जिद नहीं मैं कभी करुँगी
पापा मुझको घर ले जाना.
कहना मानूँ दूध पियूंगी
घर की चाट पर नहीं चढूँगी
घर ले जाओ मुझको पापा
हॉस्टल मे मैं नहीं पढूंगी.

अ.किर्तिवर्धन
09911323732
box.net/kirtivardhan

शनिवार, 21 अगस्त 2010

shabdon me

मैंने शब्दों में

भगवान को देखा

शैतान को देखा

आदमी तोबहुत देखे

पर

इंसान कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने प्यार को देखा

कदम कदम पर अंहकार भी देखा

धर्मात्मा तो बहुत देखे

पर

मानवता की खातिर

मददगार कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने चाह देखी

भगवान् पाने की

बुलंदियों पर जाने की

गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे

पर गिरते को उठाने वाला

कोई कोई देखा।

इन्ही शब्दों में

भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा

नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा

पर निर्लाजता पर चोट करते

कोई कोई देखा।

इन्हीशब्दों में

कामना करता हूँ इश्वर से

मुझे शक्ति दे

लेखनी मेरी चलती रहे

पर पीडा में लिखती रहे

पाप का भागी में banu

यश का भागी इश्वर रहे.

रविवार, 15 अगस्त 2010

pakistani chahat

पाकिस्तानी चाहत
तिल का ताड़ बनाते हैं हम
बस अपनी बात सुनते हैं हम
हमको क्या लेना आपके जख्मों से
बस अपना दर्द सुनाते हैं हम.

हमदर्दी पाते हैं महफ़िल मे जाकर हम
सौगातें लाते हैं अपना दर्द दिखाकर हम
क्या रखा है नंगी सच्चाई बतलाने मे
चापलूसी से गैरों मे भी शामिल हो जाते हैं हम.
अपनी बातों से दिन को रात जताते हैं हम
आतंकवाद को आज़ादी की लड़ाई बताते हैं हम
यकीं करता है दुनिया का बादशाह हम पर
अपने घर मे आशियाँ उसका बनवाते हैं हम.
मुल्क ही नहीं कौमों को भी लड़वाते हैं हम
आग लगी गर कहीं हाथ सेकने जाते हैं हम
आप यकीं करें या न करें क्या फर्क पड़ता है
आतंकवाद से लड़ने के सिरमौर कहाए जाते हैं हम.
अपना बस एक ही सिद्धांत बनाते हैं हम
सत्ता बस बनी रहे जोड़ तोड़ करते हैं हम
बेनजीर या नवाज़ ,मुसर्रफ ,क्या फर्क पड़ता है
देश के मुखिया बने रहें जतन लड़ते हैं हम.
सच है अपने घर मे बेगाने हो जाएंगे हम
दिया आज आशिआना उसको कल मालिक बनायेंगे हम
हमें कौन हज़ार साल जिन्दा रहना है
इतिहास मे अपना नाम लिखा जाएंगे हम.
गुमनामी मे नहीं मरना चाहते हैं हम
दुनिया सदा याद करे कुछ ऐसा चाहते हैं हम
सच्ची राहों से शोहरत मिला नहीं कराती
कड़वी सच्चाई कैसे तुम्हे बताये हम?
आतंकवाद के सभी गुटों को पालें हैं हम
चीन और अमेरिका को एक साथ साधे हैं हम
कभी बताते हिंद को मानवाधिकारों का दुश्मन
कभी कश्मीर को विवादित क्षेत्र बताते हैं हम.
इस्लाम का साम्राज्य दुनिया मे चाहते हैं हम
उसके भी मुखिया बनना चाहते हैं हम
पैगम्बर के बाद किसी को कोई माने
ऐसी छवि जग मे अपनी चाहते हैं हम.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

tiranga

स्वतंत्रता दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं
तिरंगा
तीन रंग मे रंग हुआ है,मेरे देश का झंडा
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.
इस झंडे की अजब गजब,तुम्हे सुनाऊं कहानी
केसरिया की शान है जग मे,युगों-युगों पुरानी.
संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना रहा.
शान्ति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग कहलाया.
महावीर ने सत्य,अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया
शांत रहे सम्पूर्ण विश्व,सफ़ेद धवज फहराया.
खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया.
वसुधैव कुटुंब मे कोई.कहीं रहे न भूखा
मानवता जन-जन मे व्यापे,नहीं बढ़ नहीं सुखा.
अशोक्माहन हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया
सावधान चोबिसों घंटे,चक्र का महत्व बताया.
नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता.
तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये
अध्यात्म भारत की देन,विजय धवज फहराए.

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
09911323732

शनिवार, 14 अगस्त 2010

ganga

गंगा

जिसमे तर्पण करते ही पुरखें भी त़िर जाते हैं
मानव की तो बात है क्या,देव भी शीश झुकाते हैं.
मैं गंगा हूँ
मेरा अस्तित्व
कोई नहीं मिटा सकता है.
मैं ब्रह्मा के आदेश से
स्रष्टि के कल्याण के लिए उत्तपन हुई.
ब्रह्मा के कमंडल मे ठहरी
भागीरथ की प्रार्थना पर
आकाश से उतरी.
शिव ने अपनी जटाओं मे
मेरे वेग को थामा,
गौ मुख से निकली तो
जन-जन ने जाना.
मैं बनी हिमालय पुत्री
मैं ही शिव प्रिया बनी
धरती पर आकर मैं ही
मोक्ष दायिनी गंगा बनी.
मेरे स्पर्श से ही
भागीरथ के पुरखे तर गए
और भागीरथ के प्रयास
मुझे भागीरथी बना गए.
मैं मचलती हिरनी सी
अलखनंदा भी हूँ.
मैं अल्हड यौवना सी
मन्दाकिनी भी हूँ.
यौवन के क्षितिज पर
मैं ही भागीरथी गंगा बनी हूँ.
मैं कल-कल करती
निर्मल जलधार बनकर बहती
गंगा
हाँ मैं गंगा हूँ.
दुनिया की विशालतम नदियाँ
खो देती हैं
अपना वजूद
सागर मे समाकर.
और मैं गंगा सागर मे समाकर
सागर को भी देती हूँ नई पहचान
गंगा सागर बनाकर.

डॉ अ कीर्तिवर्धन.
9911323732

रविवार, 8 अगस्त 2010

aao ek itihas rachayen

आओ एक इतिहास रचाएं
अमावस्या के गहन अंधकार मे
आशाओं के दीप जलाकर
इस धरती पर स्वर्ग बनायें
आओ एक इतिहास रचाएं.
एक बालक को शिक्षित करके
शिक्षा का एक दीप जलाकर
शिक्षित भारत देश बनायें
आओ एक इतिहास रचाएं.
इस धरती पर वृक्ष लगाकर
धरती माँ को गहने पहनाकर
प्रदुषण को दूर भगाएं
आओ एक इतिहास रचाएं.
युद्ध उन्मादी लोगों को भी
शान्ति का पाठ पढ़ाकर
विश्व विजय अभियान चलायें
आओ एक इतिहास रचाएं.
मानव सेवा धर्म बनाकर
सात्विकता जीवन मे लायें
जात-पात का भेद मिटाकर
आओ एक इतिहास रचाएं.
आतंकवाद के कठिन दौर मे
एक संकल्प अभियान चलाकर
मानवता का पाठ पढ़ाएं
आओ एक इतिहास रचाएं
भ्रष्ट आचरण की आंधी मे,
नैतिकता के दीप जलाकर
राम राज को फिर ले आयें
आओ एक इतिहास रचाएं.
जनसंख्या नियंत्रित करने को
निज देश समृद्ध करने को
शिक्षित समाज निर्माण कराएँ
आओ एक इतिहास रचाएं.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732

रविवार, 1 अगस्त 2010

ghar

टूटने लगे हैं घर अब दादी के दौर के
बिखरने लगे हैं लोग जब गाँव छोड के.
बढ़ने लगा है गाँव सरहद के छोर से
बनने लगे मकान जब घरों को तोड़ के.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
9911323732

शनिवार, 24 जुलाई 2010

aastha ke phool

आस्था के फूल
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.
लोग अपनों से छले जाते हैं जहाँ मे
छलने से फिर भी घबराते नहीं हैं.
आस्था को आधार बना आगे बढ़ाते जाते हैं
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.
कुछ लोग बताते हैं "खुदा" खुद को मगर
"खुदा" की मौजूदगी को वो भी ठुकराते नहीं हैं.
तन्हाई मे करते हैं वो बंदगी "खुदा"की
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.
साथ चलने की खाकर कसम,जिंदगी मे
रहबर छोड़ जाते हैं अक्सर मझधार मे.
इंतजार मे रहती आँखें खुली,मरते वक़्त
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.
नए दोस्तों से बढाकर नजदीकियां
फिर नए रिश्ते हर पल बनाते हैं.
छलने वाले की बताते हैं मजबूरियां
आस्था के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं.
Dr. A.Kirti vardhan
09911323732
http://kirtivardhan.blogspot.com/
"मुझे इंसान बना दो " किताब से
मूल्य १००/ रजिस्ट्री डाक से

गुरुवार, 22 जुलाई 2010

aadhunik beti

आधुनिक बेटियां
आज बेटी हुनर बंद हो गयी है
पढ़ लिख कर पैरों पर खड़ी हो गयी है
जो होती थी निर्भर सदा दूसरों पर
आज माँ बाप का सहारा हो गयी है.
साहस से अपने दुनिया बदलकर
हर कदम पर बेटी विजयी हो गयी है.
क्या खोया क्या पाया,जरा यह विचारें
आज बेटी जहाँ मे बेटा हो गयी है.
वात्सल्य और मातृत्व सुख को भुलाकर
पैसों की दौड़ मे बेटी खो गयी है.
चाहती नहीं वह माँ बनना देखो
आज बेटी बंज़र धरती हो गयी है.
बनाये रखने को अपना शारीरिक सौंदर्य
बेटी ही भ्रूण की हत्यारिन हो गयी है.
चाहती आज़ादी सामाजिक मूल्यों से
आज बेटी खुला बाज़ार हो गयी है.
बिन ब्याह संग रहना और नशा करना
आधुनिक बेटी की शान हो गयी है.
जिस घर मे बेटी ब्याह कर गयी है
उस घर मे खड़ी दीवार हो गयी है.
थे प्यारे जो माँ बाप भाई बहन अब तक
आज निगाहें मिलाना दुशवार हो गयी है.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

शनिवार, 17 जुलाई 2010

jatan se odhi chadaria

पंडित मुकेश चतुर्वेदी "समीर" सागर (मध्य प्रदेश )से लिखते हैं...........
अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध वर्ष पर वृद्ध भारत का साक्ष्य प्रस्तुत करता डॉ अ कीर्तिवर्धन द्वारा सम्पादित संकलन "जतन से ओढ़ी चदरिया" दिन प्रतिदिन विकराल रूप धारण कराती जा रही वृद्धों के जीवन यापन सम्बन्धी वैश्विक समस्या पर राष्ट्रीय परिपेक्ष्य मे एक अति समीचीन व् अदत्तन अनुपम संकलन है.इस अत्यंत जागरूक प्रयास हेतु डॉ अ कीर्तिवर्धन निश्चय ही सतत साधुवाद के पात्र बने रहेंगे.
(यह संकलन प्राप्त करने के लिए डॉ कीर्तिवर्धन से संपर्क करें.)

रविवार, 11 जुलाई 2010

makan aur ghar

मकान और घर
जिस दिन मकान घर मे बदल जायेगा
सारे शहर का मिजाज़ बदल जायेगा.
जिस दिन चिराग गली मे जल जायेगा
मेरे गावं का अँधेरा छट जायेगा.
आने दो रौशनी तालीम की मेरी बस्ती मे
देखना बस्ती का भी अंदाज़ बदल जाएगा.
रहते हैं जो भाई चारे के साथ गरीबी मे
खुदगर्जी का साया उन पर भी पड़ जाएगा.
दौलत की हबस का असर तो देखना
तन्हाई का दायरा "कीर्ति" बढ़ता जाएगा.
उड़ जायेगी नींद सियासतदानो की
जब आदमी इंसान मे बदल जाएगा.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२
www.kirtivardhan.blogspot.com

रविवार, 4 जुलाई 2010

jatan se odhi chadaria

बुजुर्गों कि समस्याओं एवं समाधान पर केन्द्रित पुस्तक "जतन से ओढ़ी चदरिया" डॉ अ कीर्तिवर्धन द्वारा सम्पादित मूल्य ३००/
संपर्क करें -डॉ अ कीर्तिवर्धन
५३,महालक्ष्मी एन्क्लेव ,मुज़फ्फरनगर-२५१००१ उत्तर प्रदेश
09911323732

शनिवार, 12 जून 2010

garib ka jeena

प्रिय मित्र,
आपके पास एक क्षणिका भेज रहा हूँ,प्रतिक्रिया से अवगत करने की कृपा करें.
धन्यवाद्,
गरीब का जीना
केंचुए सा रेंगना बताते हैं.
केंचुए कि उपयोगिता
जमीन मे कितनी
शायद
नहीं जान पाते हैं.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२

रविवार, 6 जून 2010

khota sikka

खोटा सिक्का
हम खोटे ही सही,सिक्के तो हैं
नहीं चलेंगे कोई बात नहीं
कम से कम तौलने के काम तो आयेंगे.
आपकी जेब मे बजते रहेंगे
कुछ होने का अहसास तो दिलाएंगे.
हमें खोने का भी तुम्हे गम न होगा
हमें फैंकना मारने के काम तो आयेंगे.
हम खोटे सिक्के हैं
खोटे ही सही
वक़्त पर अपने होने का अहसास दिलाएंगे.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

vo mere hain

वो मेरे हैं
खुली आँखों से देखे हैं
तुने जो सपने
वो मेरे हैं.
उठ रहे तूफ़ान
जो दिले समंदर मे तेरे
वो मेरे हैं.
जरुरी तो नहीं
हर राह से तुम्ही गुजरों
कोई और गुजरा है उसी राह
तेरी चाह मे
देखें हैं कदमों के निशाँ
जो दिले राहों मे
वो मेरे हैं.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

rashak

रश्क
रश्क करने वाले मेरी ख़ुशी से
मेरे अश्कों का भी दीदार कर
छलकते हैं मेरे आंसू गैरों के गम मे
और बह जाते हैं उनका प्यार देखकर.
जीने कि तमन्ना जिनके दिलों मे
बस खुद का घर परिवार देखकर
मरे हुए हैं वो लोग मेरी नज़र मे
तड़फते नहीं कहीं उजड़ा संसार देखकर.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

शनिवार, 5 जून 2010

shabdon me

मैंने शब्दों में

भगवान को देखा

शैतान को देखा

आदमी तोबहुत देखे

पर

इंसान कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने प्यार को देखा

कदम कदम पर अंहकार भी देखा

धर्मात्मा तो बहुत देखे

पर

मानवता की खातिर

मददगार कोई कोई देखा।

इन्ही सब्दों में

मैंने चाह देखी

भगवान् पाने की

बुलंदियों पर जाने की

गिरते हुए भी मैंने बहुत देखे

पर गिरते को उठाने वाला

कोई कोई देखा।

इन्ही शब्दों में

भ्रष्टाचार को महिमा मंडित करते देखा

नारी की नग्नता को प्रदर्शित करते देखा

पर निर्लाजता पर चोट करते

कोई कोई देखा।

इन्हीशब्दों में

कामना करता हूँ इश्वर से

मुझे शक्ति दे

लेखनी मेरी चलती रहे

पर पीडा में लिखती रहे

पाप का भागी में banu

यश का भागी इश्वर रहे.
dr a kirtivardhan

रविवार, 30 मई 2010

mera man

मेरा मन
मैंने सुना
वृक्षों के नवांकुरित पत्तों का कलरव
वृद्ध पत्तों का सिंहनाद
पीत पत्तों का रुदन.
जिसने पुलकित कर डाला
मेरा मन.
विचारों कि उठती तरंग
जीवन का निष्ठुर अंत
हवा का झोंका
पानी मे तरंग
पानी मे झिलमिल
सूरज कि किरण
जीवंत हो उठा
मेरा मन.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२

jakhmon ki dastan

जख्मों कि दास्ताँ
वक़्त ने जख्मों को मेरे
कुछ इस तरह सी दिया है
गर मखमल के गलीचे पर
टाट का पैबंद लगा दिया है.
जख्मों कि दास्ताँ अब
मेरे चेहरे से बयां है
भले ही जिंदगी कि खातिर
मैंने उनको भुला दिया है.
टूट कर जोड़े गए
शीशे के मानिंद
जिंदगी का हर लम्हा
मेरे जख्मों का गवाह है.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

शनिवार, 29 मई 2010

सपने का मेल
एक कला कौवा
छीन कर ले गया निवाला
उस बच्चे के हाथ से
जो दो दिन से था भूखा.
जिस निवाले को पाने कि खातिर
माँ से भी रूठा था
भाई से लड़ा था
भीख मांगी थी
सड़क पर भी पड़ा था.

कौवे के छिनने से निवाला
बच्चे को
जरा भी गुस्सा नहीं आया
वह अपनी भूख भी भूल गया
बस
कौवे को देखने मे मशगुल रहा.
उसे अच्छा लगा
कौवे का छिनना निवाला
फिर
दीवार पर बैठकर खाना.
उसके लिए यह एक खेल था
शायद
उसके सपनों का मेल था.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

रविवार, 23 मई 2010

मेरा दर्द

मेरा दर्द

कुछ लोग जहाँ मे यूँ भी मुस्कराते हैं
अपने ही जख्मों मे खुद नश्तर लगते हैं
लेते हैं इम्तिहान वो अपने दर्द का
आँखों मे अंशु पर मुस्कराते हैं.
मैंने भी अपने दिल मे कुछ जख्मों को पाला है
हवा दी तन्हाइयों को,सिद्दत से दर्द संभाला है.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
09911323732

रविवार, 16 मई 2010

खवाब

ख्वाब ही हैं जो जिंदगी को जीना सिखा देते हैं
ख्वाब ही है जो मौत से भी लड़ना सिखा देते हैं
आप तो बस टूटे हुए ख्वाबों की बात करती हो
हम टूटे ख्वाब को भी,ख्वाब मे मुकम्मल बना देते हैं.
हम ख्वाब देखते हैं,पर हकीकत मे जिया करते हैं
ख्वाब को मंजिल नहीं रास्ता कहा करते हैं
आप ख्वाब देख कर ही ख्यालों मे खो जाते हो
हम ख्यालों को भी ख्वाब मे हकीकत बना देते हैं.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२

बुधवार, 24 मार्च 2010

शब्द यानि शिक्षा का महत्व

शब्द बीज_
मैंने बोया
एक बीज शब्द का
मरुस्थल में.
वहां लहलहाई
शब्दों की खेती.
फिर बहने लगी
एक नदी
शब्दों की
कविता बनकर
उस मरुस्थल में.
एक दिन कुछ और नदियाँ
शब्दों की आकर मिली
उसी मरुस्थल में.
और
बन गया एक सागर
शब्दों का
मरुस्थल में.
अब मरुस्थल
मरुस्थल नहीं रहा
अपितु
बन गया है
साहित्य सागर.
साहित्य सागर में
तैरती हैं नौकाएं
मानवता का सन्देश देती हुई
शिक्षा का प्रसार करती हुई
और उससे भी अधिक
आदमी को इंसान बनाती हुई

शब्द बीज
बहुत शक्तिशाली है
आओ हम सब मिलकर लगायें
एक-एक शब्द बीज
रेगिस्तान में
दलदली व बंजर भूमि में
पर्वत-पहरों पर
जंगलों में
और
खेत-खलिहानों में.
ताकि
पैदा हो सकें
अनेक शब्द
जिससे भरपूर रहें
हमारी बुद्धि के गोदाम
तथा मिटा सकें भूख
अपने अहंकार की
झूठे स्वार्थ की
जातीय घर्णा की
सत्ता लोलुपता की
तथा
निरंकुश आतंकवाद की.

शायद
तब ही मनुष्य
इंसान बन पायेगा
जब
शब्दों की
सार्थक एवं पोष्टिक खुराक से
उसका पेट भर जाएगा.

डॉ अ किर्तिवर्धन
९९११३२३७३२
०१३१२६०४९५०

शब्द यानि शिक्षा का महत्व

शब्द बीज_
मैंने बोया
एक बीज शब्द का
मरुस्थल में.
वहां लहलहाई
शब्दों की खेती.
फिर बहने लगी
एक नदी
शब्दों की
कविता बनकर
उस मरुस्थल में.
एक दिन कुछ और नदियाँ
शब्दों की आकर मिली
उसी मरुस्थल में.
और
बन गया एक सागर
शब्दों का
मरुस्थल में.
अब मरुस्थल
मरुस्थल नहीं रहा
अपितु
बन गया है
साहित्य सागर.
साहित्य सागर में
तैरती हैं नौकाएं
मानवता का सन्देश देती हुई
शिक्षा का प्रसार करती हुई
और उससे भी अधिक
आदमी को इंसान बनाती हुई

शब्द बीज
बहुत शक्तिशाली है
आओ हम सब मिलकर लगायें
एक-एक शब्द बीज
रेगिस्तान में
दलदली व बंजर भूमि में
पर्वत-पहरों पर
जंगलों में
और
खेत-खलिहानों में.
ताकि
पैदा हो सकें
अनेक शब्द
जिससे भरपूर रहें
हमारी बुद्धि के गोदाम
तथा मिटा सकें भूख
अपने अहंकार की
झूठे स्वार्थ की
जातीय घर्णा की
सत्ता लोलुपता की
तथा
निरंकुश आतंकवाद की.

शायद
तब ही मनुष्य
इंसान बन पायेगा
जब
शब्दों की
सार्थक एवं पोष्टिक खुराक से
उसका पेट भर जाएगा.

डॉ अ किर्तिवर्धन
९९११३२३७३२
०१३१२६०४९५०

मंगलवार, 23 मार्च 2010

अल्पाएं

दोस्तों,वर्तमान दौर मे व्यक्तिवादी एवं अहंकारी विचारधारा तथा कुछ वास्तविकताओं के द्रष्टिगत एक रचना लिखी है.आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है.

अल्पायें
हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.

लिखा
जो कुछ
सच बताया है.

विनम्रता
किसी समय
मानवीय संस्कार थी.

हमने
विनम्रता को
कायरता बताया है.

मानिए
अथवा नहीं
क्या जाता है

हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.

सत्य
हरिश्चंद्र का
प्रयाय्वाची बना है.

हमने
सत्य को
समयानुसार बदला है.

शास्त्रानुसार
सत्य की
यही परिभाषा है.

झूठ
बोलना नहीं
यह विचारा है.

गाय
पीछे कसाई
हाथ दिखाया है.

कसाई
ताकतवर था
स्वार्थ संवारा है.

सहकर
दरवाजे पर
क्या बाहर आऊं?

नहीं
पुत्र से
मना करा दूँ

व्यवहार
सत्य पर
भारी हो गया .

नियम
मेरा अपना
सत्य हो गया.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०१३१२६०४९५०
९९११३२३७३२

शनिवार, 6 मार्च 2010

वर्णाश्रम एवं चतुर्वर्नाया

वर्णाश्रम एवं चातुर्वर्ण्य

- ए. कीर्तिवर्द्धन

वैदिक परम्परा में वर्णाश्रम धर्म एवं चार वर्णों को आधार माना जाता है । परन्तु वर्तमान में इसका जो रूप हमें दिखायी देता है, वह शास्त्रों की परिभाषा के विपरीत है । वर्णाश्रम व्यवस्था एवं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था सदैव ही समाज में रही है और रहेगी । अगर हम कहें कि वैश्‍विक किरणें ( cosmic rays) प्रत्येक वस्तु या वाणी पर अपना प्रभाव डालती हैं, तो यह मात्र हमारी कल्पना नहीं अपितु अटल सत्य है । वर्णाश्रम व्यवस्था चातुर्वर्ण्य व्यवस्था सम्पूर्ण मानव जाति की वास्तविक अवस्था है, जिसका अचेषण एवं धारणा वैदिक परम्परा के ऋषि-मुनियों ने की थी । आज हिन्दु समाज में जिस जाति व्यवस्था, ऊँच नीच का भेदभाव या छूआछूत की बात होती है वह वैदिक वर्णाश्रम व्यवस्था एवं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था में कहीं नहीं है । वर्तमान व्यवस्थायें स्वार्थी एवं पाखंडी लोगों एवं तथाकथित धर्म एवं सत्ता के गठजोड़ की ही देन हैं ।

फिर वर्णाश्रम एवं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था क्या है? इसका उत्तर जानने के लिये हमें शास्त्रों को खंगालना होगा । हमारे शास्त्र स्पष्ट रूप से कहते हैं कि वर्णाश्रम व्यवस्था से मानव को धर्म की उन्‍नति होगी । शास्त्र कहते हैं ‘पिंडे पिंडे मतिभिन्‍ना’ यानि हर व्यक्‍ति का धर्म अलग होता है । अगर ऐसा हुआ तो संसार में अनगिनत धर्म खड़े हो जायेंगे । परन्तु यहाँ धर्म का मतलब नहीं अपितु व्यक्‍तिगत धारणा की अवस्था है । पिता, माता, पुत्र, भाई, बहन सबका धर्म अलग-अलग हो सकता है । इसीलिये शास्त्रों ने धर्म की व्याख्या की है “धारणात्‌ धर्मा इत्याहू: धर्मो धारयते प्रजा:” । ब्रह्‍माण्ड में जो अनन्‍त शक्‍तियाँ सदा बहती रहती हैं, उनको सुयोग्य धारणा एवं उनसे जनकल्याण के उपाय करना ही धर्म है ।

वर्णाश्रम धर्म का व्यापक अर्थ स्वयं इसी में छुपा है । वर्ण यानि दिव्य रंग जो प्रत्येक व्यक्‍ति के शरीर के चारों ओर रहने वाले प्रकाशवलय में रहता है । यह प्रकाशवलय, व्यक्‍ति गुण, स्वभाव के अनुसार प्रभावित होकर उसका तेजोवलय ( AURA) बनकर दिखाई देता है । दिव्य योगी एवं सन्त इस तेजोवलय को देखने में सक्षम होते हैं, हाँ आज विज्ञान भी इसे स्वीकार करता है एवं विशेष यन्त्रों से देखने में सक्षम है । इस तेजोवलय को व्यक्‍ति के गुण स्वभाव एवं प्रकृति के आधार पर वैदिक धारणा में विभिन्‍न वर्णों में बाँटा गया, जिसे वर्णाश्रम कहा गया । उदाहरणार्थ - अत्यन्त शुद्ध आचार विचार वाले व्यक्‍ति के तेजोवलय का वर्ण शुक्‍ल रहता है । शास्त्रों में ऐसे व्यक्‍ति को ब्राह्मण कहा गया । इसमें जाति, मजहब का कोई आधार नहीं है । चातुर्वर्ण्य व्यवस्था का उद्‍गम इसी प्रकार के वर्णाश्रम धर्म से हुआ । इस प्रकार चातुर्वर्ण्य एवं वर्णाश्रम व्यवस्था, गुण, कर्म, स्वभाव एवं संस्कारों पर निर्भर है, न कि जन्मजात व्यक्‍ति व्यवस्था पर । यह एक दिव्य प्राकृतिक अवस्था है । वैदिक परम्परा ने यह दिव्य अवस्था का अध्ययन कर समाज के कल्याण एवं सुचारू संचालन के लिये कुछ नियम बनाये जिन्हें वर्णाश्रम धर्म एवं चातुर्वर्ण्य व्यवस्था कहा गया । श्रीगीता में चातुर्वर्ण्य के बारे में स्पष्ट कहा गया है ।


चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः ।
वस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमक्ष्ययम्‌ ॥
जन्मतः कोई ब्राह्मण नहीं है । जन्मत: सारे शूद्र हैं । उत्तम संस्कारों के कारण कोई भी ब्राह्मण बन सकता है । शास्त्रानुसार -
जन्मता जायते शूद्रः संस्कारात्‌ द्विज उच्यते । ”
फिर ब्राह्मण कौन है? जो ब्रह्म जानता है वही ब्राह्यण है
“ब्रह्म जानाति ब्राह्मणः ।



चातुर्वर्ण्य में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र चार वर्णों का निर्धारण मनुष्य के चतुर्विध पुरूषार्थ पर निर्धारित कर दिया गया ।

ब्राह्मण - वैदिक परम्परा का मुख्य ध्येय आदर्श ब्राह्मण बनना है । इसके अनुसार कोई भी सुयोग्य आचार, विचार का पालन कर ब्राह्मण बन सकता है । जिसका आचार, विचार आध्यात्मिक भाव का यानि ब्रह्मा को जानने का है, वही ब्राह्मण बन सकता है । ब्राह्मण बने व्यक्‍ति का तेजोवलय शुक्ल वर्ण का होता है । अर्थात शुक्ल दिव्य वलयवर्ण का व्यक्‍ति ब्राह्मण है । ऐसा व्यक्‍ति आध्यात्म साधना एवं चिन्तन में लिप्त रहता है तथा कामिनी, कंचन एवं कीर्ति से बचकर रहता है । उपनिषद के अनुसार शुक्ल वर्ण दिव्यवलय वाला व्यक्‍ति किसी भी जाति, धर्म अथवा त्वचा के रंग का हो, ब्राह्मण ही कहलायेगा । जैसा कि ऊपर भी लिखा गया है कि जन्म से सब शूद्र हैं, अतः कोई भी सुयोग्य साधना कर ब्राह्मण बन सकता है ब्राह्मण समाज के आदर्श का प्रतीक है न कि जाति व्यवस्था का ।

क्षत्रिय - जो अपने क्षेत्र की रक्षा करता है वह क्षत्रिय है । प्रश्‍न उठता है कि कौन सा क्षेत्र ? श्री गीता में कहा गया है-


इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्र मित्ययिधीयते ।
एतद्यो वेत्‍ति तं प्राहुः क्षेत्रज्ञ इतितद्विदः ॥


आशय यह है कि अपना शरीर ही वह क्षेत्र है तथा जो शरीर की रक्षा कर वह क्षत्रिय है । कहा गया है कि सर्वसाधना का पल उपकरण है जिसकी आत्मसाधना के कारण रक्षा करना आवश्यक है । शरीर की रक्षा शरीर के लिये नही वरण आत्मसाधन के लिये जरूरी है । आत्मसाधना का फल आत्मज्ञान या ब्रह्मज्ञान होते हैं । परन्तु सभी एकदम से ब्रह्मज्ञानी नहीं बन सकते । इस उच्च अवस्था तक पहुँचने के लिये आत्मसाधना करनी पड़ती है । आत्मसाधना के लिये शरीर की रक्षा करना आवश्यक है । अतः जो साधक नियमबद्ध रहकर शरीर की रक्षा करता है वह क्षत्रिय कहलाता है । इस प्रकार अपना स्वास्थ्य एवं कृतिक्षेत्र की रक्षा करने वाले जन जहाँ भी होंगे वे उस समाज के क्षत्रिय माने जायेंगे । क्षत्रिय के सम्बन्ध में पुराणों में परशून्य कथा का उल्लेख है कि उन्होंनें पृथ्वी को इक्‍कीस बार निःक्षत्रिय किया था यहाँ पृथ्वी से तात्पर्य वह स्थान जिसकी क्षत्रिय रक्षा करता है अर्थात सम्पूर्ण शरीर से है । फिर वह कौन से क्षत्रिय हैं जिन्हें परशुराम ने मार डाला । जब हम अपने कृतिरक्षण की अवस्था से आगे बढ़ते हैं तब हम क्षत्रिय से ब्राह्मणत्व की ओर बढ़ते हैं । कृतिशून्य साधक ही ब्राह्मण है । हमारे शास्त्रों में बताया गया है कि हमारा अस्तित्व इक्‍कीस सूक्ष्म-सूक्ष्मतर अवस्थाओं में रहता है । हर एक अवस्था को लेकर साधक की कृतियाँ उसी आधार से रहती हैं । हमारी पंचकर्मेन्द्रियां, पंचज्ञानेन्द्रियां, पांच तन्यात्राएं एवं पचं महायत्रों को लेकर कुल बीस तत्वास्थाएं हैं । इन बीस तत्वास्थाओं को संचालित करने वाला इक्‍कीसवाँ हमारा मन है । इन इक्‍कीस अवस्था में स्थित आग्रही मनरूप या कृतिरूप क्षत्रियों का संहार करना ही ब्राह्मण बनने की इच्छा करने वाले परशुराम के लिये आवश्यक था । इस प्रकार परशुराम ने ब्राह्मण बनने के लिये अपने शरीररूपी पृथ्वी से सभी इक्‍कीस कृतियों पर विजय पायी ।

वैश्य - ‘विश’ यानि प्रजा तथा वैश्य यानि प्रजा का पोषण करने वाला । प्रजा यानि कृतिरूप अवस्था । आध्यात्म साधना जिन कृतियों का पोषण करना स्वीकार करते हैं उन्हें शास्त्र वैश्य कहते हैं । कुछ साधक सारे जीवन तक एक ही कृति को धारण कर कर्मठता से मग्न रहते हैं, और अपनी कृति का पोषण करते हैं, शास्त्रकार उन्हें वैश्य कहते हैं । अपने कर्म विशेष में मशगूल रहना, कर्मठता के साथ आगे बढ़ना, अपनी कृति के पोषण में लगे रहना वाला व्यक्‍ति वैश्य है । वैश्य कृति के व्यक्‍ति का स्वभाव संचय के साथ-साथ मुक्‍त मन से दया, धर्म देश के प्रति निष्ठावान्‌ एवं दानी होता है । धर्म की परिभाषा है “यतोम्यूदय निःश्रेयस सिद्धिः स धर्मः” इस परिभाषा के धारण करने वाला व्यक्‍ति/साधक ही वैश्य है ।

शूद्र - जिस साधक को थोड़ी भी साधना करने के बाद उसका आविर्भाव या अहंकार अधिक हो जाता है, यह कुछ करने के पश्‍चात्‌ चित्त का उद्रेक अधिक हो जाता है, ऐसे व्यक्‍तियों को शास्त्रों में शू-उद्रः यानि शूद्रः कहा जाता है । शूद्र जाति नहीं वरण वृत्तिविस्फोट है । ऐसे शूद्र वृत्ति वाले मनुष्य प्रत्येक समाज में बहुलता में पाये जाते हैं । इसलिये ऐसे व्यक्‍तियों को वृत्तिउद्रेक शान्त करने के लिये, विनम्र बनने के लिये सन्त, महात्मा, भगवान, ब्राह्मण या अन्यों की सेवा करने के लिये कहा जाता है ताकि उनका भावनाउद्रेक का अहंकार कम हो सके । जिन साधकों में साधना के कारण अहंकार आता है वह शूद्रकृत्ति के साधक साधना ही न करें, यह अच्छा है । इसलिये शुद्रों के लिए तप या साधना करना मना किया है । शूद्र केवल संतजनों के सेवा फिर वही उसका धर्म है ।

उपरोक्‍त तथ्यों से स्पष्ट है कि वर्ण यानि हर एक व्यक्‍ति के चारों ओर एक तेजोवलय होता है । प्रत्येक वृत्ति का अलग वयविलय होता है जिस व्यक्‍ति का वर्ण वलय शुक्ल होगा वह ब्राह्मण, जिसका ताम्रवर्यी वह क्षत्रिय, पीतवर्ण वाला वैश्य तथा शूद्रों का वर्ण वलय कृष्ण, श्याम या काला होता है । इस वर्णवलय में किसी भी जाति, समाज या धर्म का वर्गान्तर नहीं होता है ।


सन्दर्भ ग्रन्थ - जन्म मृत्यु विज्ञान (योगीमनोहर)
- कार्तवीर्यार्जुन पुराण

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

होली की शुभकामनाएं

होली के शुभ अवसर पर शुभकामनाएं तथा एक सन्देश
देश प्रेम
खून की होली मत खेलो
प्यार के रंग मे रंग जाओ.
जात-पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख-गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अहंकार की होली जलाकर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच-नीच का भेद खत्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही संदेशा
देश प्रेम मे रंग जाओ.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९५५५०७४२०४,09911323732

बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

समीक्षा सुबह सवेरे (समीक्षक डॉ कोश्लेन्द्र पाण्डेय )

बच्चों में पर्यावरण चेतना जगाती है यह

कौशलेन्द्र पाण्डेय

एक कहावत है जिसका अर्थ है- मूर्ति देखने में छोटी तो होती है किन्तु मान्यता या प्रभविष्णुता में विराट । कमोवेश यही बात समीक्ष्य पुस्तिका “सुबह सवेरे” के लिए सुसंगत है । बहुश्रुत एवं बहुपठित लेखनधर्मी डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन की यह चौथी कृति है किन्तु बालोपयोगी होने के कारण पूर्व कृतियों से भिन्‍न है ।

अल्पवयी पाठकों को सम्बोधित करते हुये कृतिकार चिड़ियों की सामान्य प्रसन्‍नता का कारण यह बताते हैं कि वह हमेशा गाया करती हैं । बच्चों को प्रसन्‍न देखते रहने के लिये ही उनकी सलाह है कि सुबह-सवेरे की कवितायें वह गायें और चिडियों की तरह ही प्रसन्‍न रहा करें- ऐसा करने से वह स्वस्थ भी रहेंगे, जीवन में यशार्जन भी करेंगे । सोलह पृष्ठों में बड़े अक्षरों में सुमुद्रित कृति बच्चों ही नहीं, सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये पठनीय है । सुबह-सवेरे शीर्षक वाली एक लम्बी रचना विशेषकर बच्चों को सूर्योदय से पूर्व जागकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने के उपरान्त समस्त रोजमर्रा की प्राकृतिक जरूरतों से निपटने स्नान-ध्यान के अलावा पक्षियों का कलरव सुनने, साफ-सुथरी हवा में विचरण करने, अपना-अपना भविष्य उत्कर्षमय बनाने के लिए उपवन में खिलखिला रहे फूल, तितलियाँ और भँवरे तथा पूर्व दिशा में उगते बालारूण को देखकर आनंदित होने की सलाह करते हैं । एक अन्य कविता भी इस कृति में सुलभ है जिसमें बच्चे ज्ञान की देवी माँ वीणापाणि से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें सुशिक्षित बनावें, परोपकारी और बालक श्रवण कुमार की तरह ही मातृ-पितृ भक्‍त भी । वह आपसी ईर्ष्या-द्वेष शून्य, शान्तिप्रिय तथा शक्‍तिमान भी बनाने और महाराणा प्रपात, शिवाजी, गौतम बुद्ध तथा महावीर के बताये मार्ग पर गतिशील रहने की विनती भी करते हैं ।

प्रत्येक पृष्ठ पर बड़े ही आकर्षक रेखाचित्र इस कृति की जान हैं । कवितायें और ये चित्र समवेत रूप से सोना और सुहागा की भूमिका अदा करते हैं । कृति की दोनों ही रचनायें सर्वथा सरल तथा सुग्राह्य भाषा में होने के कारण उनका संदेश पाठकों तक जाता है । बालोपयोगी रचनाओं की इस पुस्तिका के लिए रचनाकार के अलावा प्रकाशक, वितरक तथा रेखा चित्रकार समान रूप से साधुवाद के पात्र हैं ।

पुस्तक-“सुबह सवेरे" रचनाकार- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन

डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय(लखनऊ)

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010

भारतीय नव वर्ष

दोस्तों,स्रष्टि का प्रथम दिवस यानि जहाँ से दुनिया की गणना शुरू होती है,वह है भारतीय स्रष्टि संवत.यह १९७२९४९१११ वर्ष यानि एक अरब सतनावें करोड़,उनतीस लाख उनचास हज़ार एक सौ ग्यारह वर्ष पुराना है.यह गणना १६ मार्च २०१० अर्थात विक्रम संवत २०६७ तक है.
भारतीय कैलेंडर का निर्माण सूर्य,चन्द्रमा.तथा अन्य ग्रहों की चाल पर आधारित है,किसी राजा (जैसा की अंगेरजी कैलेंडर मे है)के जन्म दिन या उसकी मर्ज़ी पर आधारित नहीं है.
हमारे कैलेंडर मे दिन,महीने आदि के नाम भी नक्षत्रों की गति पर ही आधारित तथा पूर्णतया वैज्ञानिक हैं.
जो लोग टेलीविजन पर स्रष्टि ख़त्म होने की बात करते हैं,उन्हें बताना चाहता हूँ कि भारतीय गणनाओं के अनुसार अभी स्रष्टि ख़त्म होने मे ४ लाख, २६ हज़ार, ८६५ वर्ष, कुछ महीने, कुछ पक्ष, कुछ सप्ताह, कुछ दिन, कुछ प्रहर, कुछ घटिकाएं,कुछ पल,कुछ विपल बाकी हैं.
भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ सूर्योदय कि प्रथम किरण के साथ चैत्र मॉस शुक्ल प्रतिपदा से होता है.इस वर्ष यह शुभ अवसर १६ मार्च २०१० को है.अतः आप सब १६ मार्च २०१० को नव वर्ष का स्वागत अपने इष्ट देव तथा बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ शुरू करें.
अगर आपको मेरा यह सन्देश अच्छा लगे तथा उचित लगे तो अन्य मित्रों को भी भेजने कि कृपा करें.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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रविवार, 24 जनवरी 2010

शुभकामनाएं

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
तिरंगा
तीन रंग मे रंगा हुआ है मेरे देश का झंडा
केसरिया,सफ़ेद और हरा,मिलकर बना तिरंगा.
इस झंडे की अजब गजब ,तुम्हे सुनाएँ कहानी
केसरिया की शान है जग मे,युगों युगों पुरानी.
संस्कृति का दुनिया मे,जब से है आगाज़ हुआ
केसरिया तब से ही है,विश्व विजयी बना हुआ.
शांति का मार्ग बुद्ध ने,सारे जग को दिखलाया
धवल विचारों का प्रतीक,सफ़ेद रंग ही कहलाया.
महावीर ने सत्य अहिंसा,धर्म का मार्ग बताया
शांत रहे संपूर्ण विश्व,सफ़ेद ध्वज फहराया.
खेती से भारत ने सबको,उन्नति का मार्ग बताया
हरित क्रांति जग मे फैली,हरा रंग है आया.
वसुधैव कुटुंब मे कोई,कहीं रहे न भूखा
मानवता जन जन मे व्यापे,नहीं बाढ़,नहीं सुखा.
अशोक महान हुआ दुनिया मे,धर्म सन्देश सुनाया
सावधान चौबीसों घंटे,चक्र का महत्व बताया.
नीले रंग का बना चक्र,हमको संदेशा देता
नील गगन से बनो विशाल,सदा प्रेरणा भरता.
तिरंगा है शान हमारी,आंच न इस पर आये
अध्यातम भारत की दें,विजय धवज फहराए.

डॉ.अ.कीर्तिवर्धन
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शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

कवायद

कवायद
जब जब जिंदगी में हादसे देखा करता हूँ
भगवान में अधिक विश्वास करने लगता हूँ
जाने किस गुनाह की सजा किसको मिली है
मैं संभल संभल कर चलने लगता हूँ.
क्या है मकसद जीने का,मैं नहीं जानता
पर गुनाहों से तौबा किया करता हूँ.
उलझ कर दुनियां के झमेलों में,इंसान न बन सका
पर आदमी बनने की कवायद किया करता हूँ.
आदमी मिलना भी नहीं आसान यहाँ है
दरिंदों की भीड़ में आदमी खोजा करता हूँ.
जानवरों को देते हैं वो गालियाँ अक्सर
मैं जानवरों में भी इन्सान खोजा करता हूँ.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
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