होली के शुभ अवसर पर शुभकामनाएं तथा एक सन्देश
देश प्रेम
खून की होली मत खेलो
प्यार के रंग मे रंग जाओ.
जात-पात के रंग न घोलो
मानवता मे रंग जाओ.
भूख-गरीबी का दहन करो
भाई चारे मे रंग जाओ.
अहंकार की होली जलाकर
विनम्रता मे रंग जाओ.
ऊँच-नीच का भेद खत्म कर
आओ गले से मील जाओ.
होली पर्व का यही संदेशा
देश प्रेम मे रंग जाओ.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९५५५०७४२०४,09911323732
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
समीक्षा सुबह सवेरे (समीक्षक डॉ कोश्लेन्द्र पाण्डेय )
बच्चों में पर्यावरण चेतना जगाती है यह
कौशलेन्द्र पाण्डेय
एक कहावत है जिसका अर्थ है- मूर्ति देखने में छोटी तो होती है किन्तु मान्यता या प्रभविष्णुता में विराट । कमोवेश यही बात समीक्ष्य पुस्तिका “सुबह सवेरे” के लिए सुसंगत है । बहुश्रुत एवं बहुपठित लेखनधर्मी डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन की यह चौथी कृति है किन्तु बालोपयोगी होने के कारण पूर्व कृतियों से भिन्न है ।
अल्पवयी पाठकों को सम्बोधित करते हुये कृतिकार चिड़ियों की सामान्य प्रसन्नता का कारण यह बताते हैं कि वह हमेशा गाया करती हैं । बच्चों को प्रसन्न देखते रहने के लिये ही उनकी सलाह है कि सुबह-सवेरे की कवितायें वह गायें और चिडियों की तरह ही प्रसन्न रहा करें- ऐसा करने से वह स्वस्थ भी रहेंगे, जीवन में यशार्जन भी करेंगे । सोलह पृष्ठों में बड़े अक्षरों में सुमुद्रित कृति बच्चों ही नहीं, सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये पठनीय है । सुबह-सवेरे शीर्षक वाली एक लम्बी रचना विशेषकर बच्चों को सूर्योदय से पूर्व जागकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने के उपरान्त समस्त रोजमर्रा की प्राकृतिक जरूरतों से निपटने स्नान-ध्यान के अलावा पक्षियों का कलरव सुनने, साफ-सुथरी हवा में विचरण करने, अपना-अपना भविष्य उत्कर्षमय बनाने के लिए उपवन में खिलखिला रहे फूल, तितलियाँ और भँवरे तथा पूर्व दिशा में उगते बालारूण को देखकर आनंदित होने की सलाह करते हैं । एक अन्य कविता भी इस कृति में सुलभ है जिसमें बच्चे ज्ञान की देवी माँ वीणापाणि से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें सुशिक्षित बनावें, परोपकारी और बालक श्रवण कुमार की तरह ही मातृ-पितृ भक्त भी । वह आपसी ईर्ष्या-द्वेष शून्य, शान्तिप्रिय तथा शक्तिमान भी बनाने और महाराणा प्रपात, शिवाजी, गौतम बुद्ध तथा महावीर के बताये मार्ग पर गतिशील रहने की विनती भी करते हैं ।
प्रत्येक पृष्ठ पर बड़े ही आकर्षक रेखाचित्र इस कृति की जान हैं । कवितायें और ये चित्र समवेत रूप से सोना और सुहागा की भूमिका अदा करते हैं । कृति की दोनों ही रचनायें सर्वथा सरल तथा सुग्राह्य भाषा में होने के कारण उनका संदेश पाठकों तक जाता है । बालोपयोगी रचनाओं की इस पुस्तिका के लिए रचनाकार के अलावा प्रकाशक, वितरक तथा रेखा चित्रकार समान रूप से साधुवाद के पात्र हैं ।
पुस्तक-“सुबह सवेरे" रचनाकार- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन
डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय(लखनऊ)
कौशलेन्द्र पाण्डेय
एक कहावत है जिसका अर्थ है- मूर्ति देखने में छोटी तो होती है किन्तु मान्यता या प्रभविष्णुता में विराट । कमोवेश यही बात समीक्ष्य पुस्तिका “सुबह सवेरे” के लिए सुसंगत है । बहुश्रुत एवं बहुपठित लेखनधर्मी डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन की यह चौथी कृति है किन्तु बालोपयोगी होने के कारण पूर्व कृतियों से भिन्न है ।
अल्पवयी पाठकों को सम्बोधित करते हुये कृतिकार चिड़ियों की सामान्य प्रसन्नता का कारण यह बताते हैं कि वह हमेशा गाया करती हैं । बच्चों को प्रसन्न देखते रहने के लिये ही उनकी सलाह है कि सुबह-सवेरे की कवितायें वह गायें और चिडियों की तरह ही प्रसन्न रहा करें- ऐसा करने से वह स्वस्थ भी रहेंगे, जीवन में यशार्जन भी करेंगे । सोलह पृष्ठों में बड़े अक्षरों में सुमुद्रित कृति बच्चों ही नहीं, सभी आयुवर्ग के पाठकों के लिये पठनीय है । सुबह-सवेरे शीर्षक वाली एक लम्बी रचना विशेषकर बच्चों को सूर्योदय से पूर्व जागकर अपने माता-पिता के चरण स्पर्श करने के उपरान्त समस्त रोजमर्रा की प्राकृतिक जरूरतों से निपटने स्नान-ध्यान के अलावा पक्षियों का कलरव सुनने, साफ-सुथरी हवा में विचरण करने, अपना-अपना भविष्य उत्कर्षमय बनाने के लिए उपवन में खिलखिला रहे फूल, तितलियाँ और भँवरे तथा पूर्व दिशा में उगते बालारूण को देखकर आनंदित होने की सलाह करते हैं । एक अन्य कविता भी इस कृति में सुलभ है जिसमें बच्चे ज्ञान की देवी माँ वीणापाणि से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें सुशिक्षित बनावें, परोपकारी और बालक श्रवण कुमार की तरह ही मातृ-पितृ भक्त भी । वह आपसी ईर्ष्या-द्वेष शून्य, शान्तिप्रिय तथा शक्तिमान भी बनाने और महाराणा प्रपात, शिवाजी, गौतम बुद्ध तथा महावीर के बताये मार्ग पर गतिशील रहने की विनती भी करते हैं ।
प्रत्येक पृष्ठ पर बड़े ही आकर्षक रेखाचित्र इस कृति की जान हैं । कवितायें और ये चित्र समवेत रूप से सोना और सुहागा की भूमिका अदा करते हैं । कृति की दोनों ही रचनायें सर्वथा सरल तथा सुग्राह्य भाषा में होने के कारण उनका संदेश पाठकों तक जाता है । बालोपयोगी रचनाओं की इस पुस्तिका के लिए रचनाकार के अलावा प्रकाशक, वितरक तथा रेखा चित्रकार समान रूप से साधुवाद के पात्र हैं ।
पुस्तक-“सुबह सवेरे" रचनाकार- डॉ. ए. कीर्तिवर्द्धन
डॉ. कौशलेन्द्र पाण्डेय(लखनऊ)
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
भारतीय नव वर्ष
दोस्तों,स्रष्टि का प्रथम दिवस यानि जहाँ से दुनिया की गणना शुरू होती है,वह है भारतीय स्रष्टि संवत.यह १९७२९४९१११ वर्ष यानि एक अरब सतनावें करोड़,उनतीस लाख उनचास हज़ार एक सौ ग्यारह वर्ष पुराना है.यह गणना १६ मार्च २०१० अर्थात विक्रम संवत २०६७ तक है.
भारतीय कैलेंडर का निर्माण सूर्य,चन्द्रमा.तथा अन्य ग्रहों की चाल पर आधारित है,किसी राजा (जैसा की अंगेरजी कैलेंडर मे है)के जन्म दिन या उसकी मर्ज़ी पर आधारित नहीं है.
हमारे कैलेंडर मे दिन,महीने आदि के नाम भी नक्षत्रों की गति पर ही आधारित तथा पूर्णतया वैज्ञानिक हैं.
जो लोग टेलीविजन पर स्रष्टि ख़त्म होने की बात करते हैं,उन्हें बताना चाहता हूँ कि भारतीय गणनाओं के अनुसार अभी स्रष्टि ख़त्म होने मे ४ लाख, २६ हज़ार, ८६५ वर्ष, कुछ महीने, कुछ पक्ष, कुछ सप्ताह, कुछ दिन, कुछ प्रहर, कुछ घटिकाएं,कुछ पल,कुछ विपल बाकी हैं.
भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ सूर्योदय कि प्रथम किरण के साथ चैत्र मॉस शुक्ल प्रतिपदा से होता है.इस वर्ष यह शुभ अवसर १६ मार्च २०१० को है.अतः आप सब १६ मार्च २०१० को नव वर्ष का स्वागत अपने इष्ट देव तथा बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ शुरू करें.
अगर आपको मेरा यह सन्देश अच्छा लगे तथा उचित लगे तो अन्य मित्रों को भी भेजने कि कृपा करें.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२,०९५५५०७४२०४,०१३१२६०४९५०
a.kirtivardhan@gmail.com
a.kirtivardhan@rediffmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
www.samaydarpan.com
भारतीय कैलेंडर का निर्माण सूर्य,चन्द्रमा.तथा अन्य ग्रहों की चाल पर आधारित है,किसी राजा (जैसा की अंगेरजी कैलेंडर मे है)के जन्म दिन या उसकी मर्ज़ी पर आधारित नहीं है.
हमारे कैलेंडर मे दिन,महीने आदि के नाम भी नक्षत्रों की गति पर ही आधारित तथा पूर्णतया वैज्ञानिक हैं.
जो लोग टेलीविजन पर स्रष्टि ख़त्म होने की बात करते हैं,उन्हें बताना चाहता हूँ कि भारतीय गणनाओं के अनुसार अभी स्रष्टि ख़त्म होने मे ४ लाख, २६ हज़ार, ८६५ वर्ष, कुछ महीने, कुछ पक्ष, कुछ सप्ताह, कुछ दिन, कुछ प्रहर, कुछ घटिकाएं,कुछ पल,कुछ विपल बाकी हैं.
भारतीय नव वर्ष का प्रारंभ सूर्योदय कि प्रथम किरण के साथ चैत्र मॉस शुक्ल प्रतिपदा से होता है.इस वर्ष यह शुभ अवसर १६ मार्च २०१० को है.अतः आप सब १६ मार्च २०१० को नव वर्ष का स्वागत अपने इष्ट देव तथा बुजुर्गों के आशीर्वाद के साथ शुरू करें.
अगर आपको मेरा यह सन्देश अच्छा लगे तथा उचित लगे तो अन्य मित्रों को भी भेजने कि कृपा करें.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२,०९५५५०७४२०४,०१३१२६०४९५०
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