दोस्तों,वर्तमान दौर मे व्यक्तिवादी एवं अहंकारी विचारधारा तथा कुछ वास्तविकताओं के द्रष्टिगत एक रचना लिखी है.आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है.
अल्पायें
हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.
लिखा
जो कुछ
सच बताया है.
विनम्रता
किसी समय
मानवीय संस्कार थी.
हमने
विनम्रता को
कायरता बताया है.
मानिए
अथवा नहीं
क्या जाता है
हमने
अपना नियम
अलग बनाया है.
सत्य
हरिश्चंद्र का
प्रयाय्वाची बना है.
हमने
सत्य को
समयानुसार बदला है.
शास्त्रानुसार
सत्य की
यही परिभाषा है.
झूठ
बोलना नहीं
यह विचारा है.
गाय
पीछे कसाई
हाथ दिखाया है.
कसाई
ताकतवर था
स्वार्थ संवारा है.
सहकर
दरवाजे पर
क्या बाहर आऊं?
नहीं
पुत्र से
मना करा दूँ
व्यवहार
सत्य पर
भारी हो गया .
नियम
मेरा अपना
सत्य हो गया.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०१३१२६०४९५०
९९११३२३७३२
मंगलवार, 23 मार्च 2010
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