शुक्रवार, 1 जनवरी 2010

कवायद

कवायद
जब जब जिंदगी में हादसे देखा करता हूँ
भगवान में अधिक विश्वास करने लगता हूँ
जाने किस गुनाह की सजा किसको मिली है
मैं संभल संभल कर चलने लगता हूँ.
क्या है मकसद जीने का,मैं नहीं जानता
पर गुनाहों से तौबा किया करता हूँ.
उलझ कर दुनियां के झमेलों में,इंसान न बन सका
पर आदमी बनने की कवायद किया करता हूँ.
आदमी मिलना भी नहीं आसान यहाँ है
दरिंदों की भीड़ में आदमी खोजा करता हूँ.
जानवरों को देते हैं वो गालियाँ अक्सर
मैं जानवरों में भी इन्सान खोजा करता हूँ.

डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२
a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
www.samaydarpan.com (e magazine)

2 टिप्‍पणियां:

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

नये वर्ष की शुभकामनाओं सहित

आपसे अपेक्षा है कि आप हिन्दी के प्रति अपना मोह नहीं त्यागेंगे और ब्लाग संसार में नित सार्थक लेखन के प्रति सचेत रहेंगे।

अपने ब्लाग लेखन को विस्तार देने के साथ-साथ नये लोगों को भी ब्लाग लेखन के प्रति जागरूक कर हिन्दी सेवा में अपना योगदान दें।

आपका लेखन हम सभी को और सार्थकता प्रदान करे, इसी आशा के साथ

डा0 कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

जय-जय बुन्देलखण्ड

K-LINK HEALTHCARE ने कहा…

aap bahut achchha likhte hain sir.