शनिवार, 11 अप्रैल 2009

पर्यावरण

____पर्यावरण ___
आगामी विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा,ऐसी धारणा वैज्ञानिकों ,बुधिजीविओं तथा राजनेताओं द्वारा निरंतेर व्यक्त की जा रही हैं.
धुर्वों पर बर्फ पिघल रही है.इसका कारण वातावरण मे अत्यधिक गर्मी का बढ़ना बताया जा रहा है.इससे हिम युग का अंत हो जायेगा,ऐसी संभावनाएं व्यक्त की जा रही हैं.
वातावरण में धूल के बादल तथा गैसों की मात्रा बढ़ने से पूर्व की तुलना मे सूर्य से आने वाली गर्मी मे कमी दर्ज की गई है.और कहा जा रहा है कि एक अन्तराल के बाद वायुमंडल मे धुल कणों कि अधिकता के कारण सूर्य कि किरणें प्रथ्वी तक नहीं पहुँच पाएंगीं.
धुर्वों पर बर्फ पिघलने से समुन्द्र का जल स्तर बढ़ रहा है.कुछ समय बाद समुन्द्र किनारे स्थित कुछ देश,नगरों के जल समाधि कि संभावना हैग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए ऊँची इमारतों पर कंकरीट के २ स्क्रेपर लगाने की योजना है.
सूरज की गर्मी को धरती पर आने से रोकने के लिए स्पेस मे शीशे की छतरी लगाने की योगना है.
ऐसे ही भयावह तथा विरोधाभासी चित्र प्रतिदिन अखबार की सुर्खियों मे छाए रहते हैं.अनेकों विद्वानों ,वैज्ञानिकों तथा राजनेताओं द्वारा उपरोक्त समस्याओं के निदान के लिए विश्व व्यापी गोष्ठिओं का आगाज कर जन-जन को इस समस्या का भयावह रूप दिकाने का प्रयास प्रारंभ कर दिया गया है.कितने आश्चर्य की बात है कि समस्या को तो बढा चढा कर दर्शाया जा रहा है परन्तु इसके कारण पर कोई विचार करने को तैयार नहीं है.वास्तव मे पर्यावरण की इस समस्या के लिए विकसित देश ही पूर्ण रूपेण जिम्मेदार हैं और अब अपने व्यापारिक हितों को साधने के लिए ही पर्यावरण की समस्या का भयावह रूप खींचने मे लगे हैं.विचार करें कि विश्व के जंगलों का कितने प्रतिशत कटान विकशित देशों द्वारा किया गया? परमाणु रिअक्टोर कहाँ लगाए गए तथा परमाणु कचरा किसके द्वारा,कहाँ पर डाला जा रहा है?एक और वैज्ञानिक कहते हैं कि सूरज की गरमी घट रही है,वातावरण मे धुल के बादल घनेपर्यावरण की समस्या को समझने से पहले आवश्यक है प्रकृति के रहस्य को समझाना...नदियों मे जल
प्रतीक था
जीवन का.
नदियों के किनारें
प्राकृतिक अभ्यारण्य बने
सभ्यताएं पली
संस्कृति का आगाज़ हुआ.
आज मानव ने तरक्की कर ली है
नदियों का जल रोककर
जलाशय बनाए
पशु पक्षियों के अभ्यारण्य काटकर
कंकरीट के जंगल बनाएं.
नदियाँ सुख गई
अभ्यारण्य ख़त्म जी हाँ,यही है वास्तविकता.प्रकृति से दूरी,जंगल ख़तम ,वर्षा मे कमी ,जीवन दायनी ऑक्सिजन का अभाव,वृक्षों के कारण भू जलस्तर की होने वाली वृद्धी मे कमी तथा वृक्षों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड के शोषण मे कमी.
भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता सदैव ही प्रकृति की पोषक रही है.हमारे ऋषि -मुनियों तथा वैज्ञानिकों ने युगों पूर्व ही प्रकृति व् पञ्च भूतों के महत्व को समझ लिया था.और इसके संरक्षण के लिए भी उन्होंने उपाय सुझाए थे जो की हमारी संस्कृति ,सभ्यता एवं धर्म के आधार भूत स्तम्भ हैं.
भारतीय धर्म ग्रंथों मे पेड़ पौधों का संरक्षण,यज्ञ हवं द्वारा वातावरण मे मौजूद हानिकारक गैसों के प्रभाव को ख़त्म करना,शुद्ध वायु मंडल का निर्माण,नदियों-नहरों के पानी की शुद्धता का ध्यान,भू जलस्तर बनाए रखने के लिए तालाब ,सरोवरों का निर्माण एवं उसमे वर्षा जल का संचयन से सम्बंधित जानकारियाँ भरी पड़ी हैं.विडम्बना है की हमने तरक्की तो कर ली है परन्तु उसके लिए क्या कीमत दी,इस पर विचार नहीं किया
जग मे हमने कर उजियारा
मन काला रंग डाला.
तुलसी चौरे पर दिया जला माँ
सबकी सुख चिंता करती थी
हमने जगह की कमी बताकर
तुलसी चौरे को तुड़वा डालायह हमारी न समझी नहीं तो क्या है की आज हम तुलसी,पीपल,व् नीम जैसे वृक्षों का महत्व नहीं समझ रहे हैं.उत्तराखंड मे चिपको आन्दोलन के प्रणेता श्री सुंदर लाल बहुगुणा ने गर्मिनों के सहयोग से वृक्षों का महत्व समझा तथा एक आन्दोलन के रूप मे अपनी जान पर खेलकर भी वृक्षों को काटने से बचाया.आज उवायु मंडल मे जमा धुल के कण स्वतः ख़तम हो जायेंगे.तब हमारे पञ्च भूतों का संरक्षण हिगा तथा प्रयावरण से सम्बंधित को समस्या नहीं रहेगी.यदि हम पत्थरों मे भी गीत सुनना चाहते हैं तो आओ वृक्ष लगाएं.
सी जज्बे की दो चरणों मे जरुरत है,पहला तो यह कि हम वृक्षों को काटने से बचाए तथ दूसरा यह कि अत्यधिक वृक्षारोपण करें.
एक अन्य बात पानी के सम्बन्ध मे भी ध्यान देने योग्य है.वर्षा के पानी को बहाने से बचाने के लिए अधिकाधिक संख्या मे तालाब,बावडी,कुँए,व् सरोवर का निर्माण किया जाए.इससे एक और तो भू जलस्तर बढेगा दूसरी और इनके पास वृक्षारोपण स्वयं भी बढेगा और पर्यावरण को स्वच्छ बनाए रखने मे सहायक होगा.वृक्षारोपण से भूमि का क्षरण भी रुकेगा.पेड़ पौधों से गुजरने वाली हवा से मधुर संगीत निकलेगा.कार्बन दाई ऑक्साइड की वातावरण मे अधिकता पर अंकुश लगेगा


पशु-पक्षी समाप्त
सभ्यता संस्कृति का लोप

आत्मनः सकाशात आकाशः संभूत,
आकाशाद वायोराग्निर्ग्रे रापोअद्भ्यः पृथ्वी. (छान्दोग्य उपनिषद )
अर्थात पंचभूतों-आकाश ,वायु,अग्नि ,जल और पृथ्वी से प्रकृति की क्रियाएं चलती हैं.आत्मा से आकाश,आकाश से वायु,वायु से अग्नि,अग्नि से जल और जल से पृथ्वी उत्पन्न हुई.भारतीय संस्कृति मे पंचभूतों की सुरक्षा एवम संरक्षा की अवधारण स्रष्टि के प्रारंभ से ही रही है जिस पर आगे चर्चा की गई है.यह भी निर्विवाद सत्य है की वातावरण मे गर्मी बढ़ रही है,भू जल स्तर भी निचे चला गया है,जिसके कारण पीने के पानी की समस्या बढती जा रही है.
प्राचीन काल मे सभ्यता और संस्कृति के फलने व् फूलने के लिए परक्रती के संरक्षण को आधार माना गया.परक्रती के साए मे ही सभ्यताएं आगे बढ़ी. हो रहे हैं,दूसरी और ग्लोबल वार्मिंग का डर बता कौन कहता है
पर्वतों मे गीत नहीं होता
कठोरता के बीच
मधुर संगीत नहीं होता?
होता है बहुत कुछ
पत्थर के दिलों मे
बस सुनाने का अपना
अंदाज नहीं होता.
देखा है रोते हुए
पत्थरों को मैंने
बहते हैं उनके अंशु
जो गिरते हैं झरने.
आहें भरा करते
पत्थर जो लुढ़कते
जब तन से उनके वृक्षों के
आँचल है सरकते.सरकता है जब आँचल
बे पर्दगी होती
उघडा हुआ हो जिस्म
निगाहें सबकी लगी होती.
होते हैं जो इंसान
कभी वो भी बहकते
हसरत लिए दिल मे
भले चुप ही रहते.
सुनने को गीत पत्थरों का
पर्वत को काटते.
कटे हुए जिस्म पर
फिर कंकरीट लादते.
कटते हुए पर्वत भला
गीत कौन सा गायें
नंगा हुआ जिस्म उनका
गीत कैसे सुनाएँ?
देखो जरा पर्वतों पर
वृक्ष लगाकर
नंगे हुए जिस्म पर
हरी चुनरी सजाकर.
पत्थरों मे गीत
तुम्हे सुनाई पड़ेंगे
बहते हुए झरने
तब संगीत बनेंगे.
चुनरी हरी हो यदि
माता के भाल पर
खेलती हों नदियाँ
उसकी कदम ताल पर.
कंकरीट के जंगलों का
न हो वहाँ जमाव
पत्थरों मे गीत के
मधुर स्वर आयेंगे.

आओ हम सब मिलकर कम से कम एक पेड़ का रोपण अवस्य करें.
आओ हम एक प्रण करें
धरती पर वन सघन करें
वृक्ष धरा के आभूषण
दूर करें सब प्रदुषण .
और अपनी धरती,पातळ,गगन,जल,वायु एवं अग्नि की पवित्रता बनाये रखने का संकल्प लें

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