रविवार, 30 मई 2010

jakhmon ki dastan

जख्मों कि दास्ताँ
वक़्त ने जख्मों को मेरे
कुछ इस तरह सी दिया है
गर मखमल के गलीचे पर
टाट का पैबंद लगा दिया है.
जख्मों कि दास्ताँ अब
मेरे चेहरे से बयां है
भले ही जिंदगी कि खातिर
मैंने उनको भुला दिया है.
टूट कर जोड़े गए
शीशे के मानिंद
जिंदगी का हर लम्हा
मेरे जख्मों का गवाह है.
डॉ अ कीर्तिवर्धन
०९९११३२३७३२

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